२१२२/२१२२
मत निकल तलवार लेकर
जय मिलेगी प्यार लेकर।१।
*
युद्ध नित बर्बाद करता
जी तनिक यह सार लेकर।२।
*
जग मिटा कर दुख सुनाने
जायेगा किस द्वार लेकर।३।
*
इस भवन का क्या करूँगा
तुम गये आधार लेकर।४।
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नेह की दुनिया अलग है
हो जा हल्का भार लेकर।५।
*
बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
*
कर गया कंगाल सब को
हर भरा सन्सार लेकर।७।
*
टूटती रिश्तों की माला
जोड़ ले कुछ तार लेकर।८।
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
आद0 लक्ष्मण धामी जी सादर अभिवादन।अच्छी ग़ज़ल कही आपने। कभी-कभी मुझे लगता है कि छोटी बह्र में पूरी बात नहीं आ पाती। बहरहाल इस ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार कीजिये
हार्दिक बधाई आदरणीय लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' जी। बेहतरीन गज़ल।*
बोझ सा हरपल है लगता
दब गये आभार लेकर।६।
आ. भाई समर जी, सादर अभिवादन । गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार ।
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब, ग़ज़ल का प्रयास अच्छा है, बधाई स्वीकार करें ।
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