बच्चे सरायों में नहीं
घरों में पलते हैं
व्यक्तित्व आया से नहीं
माँओं से बनते हैं
कितनी जल्दी लोग
पाला बदल लेते हैं
आज गँठजोड़ किसी से
कल,किसी और से कर लेते हैं
क्या कहें वक्त के सफ़र को हम
जहाँ निजता की चाह होती है
एक ही घर के बन्द कमरों में
अब,मोबाइल से बात होती है
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ0 लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर ' जी,सादर प्रणाम।
बहुत धन्यवाद आपको।
आ. ऊषा जी, सादर अभिवादन । अच्छी रचना हुई है । हार्दिक बधाई ।
श्रीमान कृश मिश्रा जी ,
हार्दिक आभार आपका
बहुत सुंदर अतुकांत हेतु बधाई आ. ऊषा जी
आ0 अमीरुद्दीन 'अमीर' साहेब, आदाब।
रचना पसंद आने हेतु हार्दिक धन्यवाद आपको
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, वास्तविक कथन का सुन्दर चित्रण करती रचना हुई है। बधाई स्वीकार करें। सादर।
आ0 समर कबीर जी,आदाब।
रचना आपको अच्छी लगी, मेरा लिखना सार्थक हुआ।
हार्दिक आभार आपका
लिखना सार्थक हुआ।
मुहतरमा ऊषा अवस्थी जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें ।
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