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ग़ज़ल-उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है

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ग़मों की दिन-ब-दिन क़िस्मत सँवरती जा रही है
उदासी इस क़दर मुझमें उतरती जा रही है

अभी तो वक़्त है पतझर के आने में,हवा क्यों
चली ऐसी कि मन वीरान करती जा रही है

बहारों ने चमन लूटा मगर बाद-ए-सबा ये 
खिज़ाओं पे हरिक इलज़ाम धरती जा रही है


फ़िराक-ए-यार का मौसम बहुत नज़दीक आया
विसाल-ए-यार की उम्मीद मरती जा रही है

उसे तो भा रही है अब ज़माने की रिवायत
यहाँ अपनी मुहब्बत भी निखरती जा रही है

कोई सूरत नहीं है चाँद के दीदार की 'ब्रज'
शब-ए-ग़म आँसुओं के साथ झरती जा रही है
​(मौलिक एवं अप्रकाशित) ​
बृजेश कुमार 'ब्रज'

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Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on April 1, 2021 at 10:02pm

आदरणीय सोनांचली जी आपका हार्दिक धन्यवाद...

Comment by नाथ सोनांचली on March 30, 2021 at 5:44pm

आद0 बृजेश कुमार ब्रज जी सादर अभिवादन। बढ़िया ग़ज़ल हुई हैं। बधाई स्वीकार कीजिये

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 22, 2021 at 1:28pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया रचना जी...

Comment by Rachna Bhatia on March 21, 2021 at 9:14am

आदरणीय बृजेश कुमार ब्रज जी,नमस्कार। बेहतरीन ग़ज़ल हुई हर शेर कमाल का है।

हार्दिक बधाई।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2021 at 8:05am

आपका धन्यवाद आदरणीय आज़ी तमाम जी...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2021 at 8:04am

स्वागत संग आभार आदरणीय अमीरुद्दीन जी...सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2021 at 8:03am

बहुत बहुत आभार आदरणीय धामी जी ध्यानाकर्षित करने के लिए...गूगल कीपैड के बार पंगे कर देता है।

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2021 at 8:02am

आदरणीय नाथ सोनांचली जी आपका हार्दिक आभार...

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on March 20, 2021 at 8:01am

आदरणीय समर कबीर जी ग़ज़ल पे आपकी उत्साहवर्धक टिप्पड़ी से अतिप्रसन्नता का अनुभव हुआ...आपसे "ग़ज़ल अच्छी है बृजेश" ये सुनने का प्रयास जारी रहेगा...

Comment by Aazi Tamaam on March 19, 2021 at 7:46pm
सादर प्रणाम आदरणीय ब्रज जी बहुत मधुर ग़ज़ल है

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