For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल (जगह दिल में तुम्हारे...)

1222 - 1222 - 1222 - 1222 

(बह्र-ए-हज़ज मुसम्मन सालिम) 

जगह  दिल में  तुम्हारे अब  भी थोड़ी  सी बची  है  क्या

मेरे  बिन  ज़िन्दगी  में  जो  कमी  सी  थी  वही  है  क्या

अभी  तक  आरज़ू  जो  दफ़्न  कर  रक्खी  है  सीने  में 

तड़प  उसकी जो  सुनता हूँ  वो तुमने भी  सुनी है  क्या

तेरे  साँसों   की  गर्मी  से  पिघल  कर   रह  गया  हूँ  मैं 

जो    हालत   हो   गई   मेरी  वही   तेरी  हुई   है   क्या 

मिले  हो जब भी हमसे  बस अचानक  ही  मिले हो तुम 

कभी  आमद  से पहले भी  ख़बर हमको  मिली  है क्या

तमन्ना   है   कि   रस्ता   बन    तुम्हारी    राह   देखूँ   मैं

फिरइक दिन आओ जबभी तुम तो मैं देखूँ ख़ुशी है क्या 

भटकता  फिर  रहा  था  इस  गली  आकर  क़दम ठहरे

कोई  इतना  बता  दे  बस  ये  उसकी  ही  गली  है क्या 

मुझे   सब  लोग   कहते   हैं   दिवाना   है   ये  मजनूँ  है 

जो  है  ये  राय   लोगों   की  तुम्हारी  भी   यही  है  क्या

मैं  हूँ  बेताब-ओ-बेकल  और  तुम  साकिन बनी हो बस

इधर   शोले  दहकते   हैं  उधर   शबनम  पड़ी   है  क्या 

फ़क़त   इक  अश्क-बारी  से  मेरी  तस्कीन  क्या  होगी  

लगी  हो  आग  जब  अन्दर  तो  बाहर  की नमी है क्या 

तुम्हारी    दिल्लगी    ठहरी    हमारी    जान    जाती  है 

'अमीर'  अब  बस करो  देखो  तड़प  ये कह रही है क्या  

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 627

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 10, 2021 at 11:16am

जनाब लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी तशरीफ़ आवरी को ख़ुश आमदीद। सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on July 10, 2021 at 7:23am

आ. भाई अमीरूद्दीन जी, सादर अभिवादन । अच्छी गजल हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 6, 2021 at 9:12am

जनाब आज़ी तमाम साहिब आदाब, ग़ज़ल पर आपकी तशरीफ़ आवरी को ख़ुश आमदीद। सुख़न नवाज़ी और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया। सादर।

Comment by Aazi Tamaam on July 6, 2021 at 8:44am

सादर प्रणाम आ अमीर जी बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है

सादर

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 7:34pm

सम्पूर्णरूप से शंका समाधान हुआ है..बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय डिटेल्स में समझाने के लिए..

Comment by अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी on July 4, 2021 at 5:11pm

जनाब बृजेश कुमार ब्रज जी आदाब, आप ग़ज़ल तक आए अपना क़ीमती वक़्त दिया इसके लिए मश्कूर हूँ। आपको ग़ज़ल पसन्द आई शर्फ़ है मेरे लिये।

//5वे शे'र के सानी के शब्द फिरइक को थोड़ा समझना चाहता हूँ इससे 1222 मात्रा की पूर्ति कैसे होती है//

जनाब यहाँ अलिफ़ वस्ल के वजह से. 'फिरइक दिन'  को  'फिरिक दिन' (122) पढ़ा और बोला जाएगा। उम्मीद है शंका समाधान हुआ होगा।

//क्या ऐब-ए-तनाफुर अब उतना महत्पूर्ण नहीं रह गया है?ऐसा देखने में आ रहा है बहुत से लोग इस दोष के साथ ग़ज़ल कह रहे हैं।//

यक़ीनन ऐब-ए-तनाफ़ुर दोष है, मगर अगर शे'र अच्छा हो तो इस ऐब को नज़र-अंदाज़ किया जाता है, यही वज्ह है कि तक़रीबन हर मुस्तनद और मअरूफ़ शुअरा हज़रात भी इससे अछूते नहीं हैं, इतना ही नहीं अगर शे'र बहुत अच्छा है तो ऐब-ए-तक़ाबुल-ए-रदीफ़ (जो कि बनिस्बत बड़ा ऐब है) भी नज़र-अंदाज़ किया जाना मान्य हो चुका है, बशर्ते वो कुल्ली तक़ाबुल-ए-रदीफ़ (जिसे पढ़ या सुन कर रदीफ़ होने का भ्रम हो) न हो।  सादर। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on July 4, 2021 at 11:28am

बड़ी ही प्यारी ग़ज़ल कही आदरणीय अमीरुद्दीन जी..बहुत बहुत बधाई

5वे शे'र के सानी के शब्द फिरइक को थोड़ा समझना चाहता हूँ इससे 1222 मात्रा की पूर्ति कैसे होती है।ये सिर्फ में जानकारी के लिए पूछ रहा हुँ अन्यथा न लें।

एक बात और जानना चाहता हुँ क्या ऐब-ए-तनाफुर अब उतना महत्पूर्ण नहीं रह गया है?ऐसा देखने में आ रहा है बहुत से लोग इस दोष के साथ ग़ज़ल कह रहे हैं।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदमी दिल का वह बुरा तो नहीं सिर्फ इससे  खुदा  हुआ  तो नहीं।। (पर जमाने से कुछ…"
1 hour ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आ, मेदानी जी, कृपया देखेंकि आपके मतल'अ में स्वर ' उका' की क़ैद हो गयी है, अत:…"
9 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल में कुछ दोष आदरणीय अजय गुप्ता जी नें अपनी टिप्पणी में बताये। उन्हे ठीक कर ग़ज़ल पुन: पोस्ट कर…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय निलेश नूर जी, आपकी ग़ज़ल का मैं सदैव प्रशंसक रहा हूँ। यह ग़ज़ल भी प्रशंसनीय है किंतु दूसरे…"
12 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय अजय गुप्ता अजेय जी, पोस्ट पर आने और सुझाव देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। बशर शब्द का प्रयोग…"
12 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्ते ऋचा जी, अच्छी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई। अच्छे भाव और शब्दों से सजे अशआर हैं। पर यह भी है कि…"
14 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"आदरणीय दयाराम जी, अच्छी ग़ज़ल हुई है। बधाई आपको  अच्छे मतले से ग़ज़ल की शुरुआत के लिए…"
14 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"रास्ता  घर  का  दूसरा  तो  नहीं  जीना मरना अलग हुआ तो…"
14 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"2122 1212 22 दिल को पत्थर बना दिया तो नहीं  वो किसी याद का किला तो नहीं 1 कुछ नशा रात मुझपे…"
17 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"ग़ज़ल अंत आतंक का हुआ तो नहींखून बहना अभी रुका तो नहीं आग फैली गली गली लेकिन सिर फिरा कोई भी नपा तो…"
18 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार नीलेश भाई, एक शानदार ग़ज़ल के लिए बहुत बधाई। कुछ शेर बहुत हसीन और दमदार हुए…"
19 hours ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186
"नमस्कार जयहिंद रायपुरी जी, ग़ज़ल पर अच्छा प्रयास हुआ है। //ज़ेह्न कुछ और कहता और ही दिलकोई अंदर मेरे…"
19 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service