सावन के दोहे :.........
गुन -गुन गाएँ धड़कनें, सावन में मल्हार ।
पलक झरोखों में दिखे, प्यारी सी मनुहार ।।
सावन में अक्सर करे , दिल मिलने की आस।
हर गर्जन पर मेघ की, यादें करती रास ।।
अन्तस में झंकृत हुए, सुप्त सभी स्वीकार।
तन पर सावन की करे, वृृष्टि मधुर शृंगार ।।
सावन में अच्छे लगें, मौन मधुर स्वीकार ।
मुदित नयन में हो गई, प्रतिबन्धों की हार।।
अन्तर्मन को छू गये, अनुरोधों के ज्वार ।
इन्कारों की अन्ततः,टूटी हर दीवार ।।
सुशील सरना / 28-7-21
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन ।सावन पर अच्छे दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई ।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छे दोहे रचे आपने, बधाई स्वीकार करें ।
'यादें करती रास'--'करती' को "करतीं" कर लें ।
पुनश्च, विषम
पुनश्च,विषम, नहीं, तृतीय दोहे का चतुर्थ ( सम) चरण पढ़े ं! अब जो पोस्ट, सावन के दोहे... " आपने संशोधन कर प्रस्तुत की है, माननीय मुझे निर्दोष लगी! सादर....!
नमस्कार, आदरणीय सुशील सरना जी! अच्छा नहीं लगा कि आपने मेरे प्रथम सुझावों पर मनन तो किया और तदनुसार तृतीय दोहे के विषम चरण को संशोधित तो किया और पोस्ट ' सावन के दोहे...."पुन: डाल दी, किन्तु मेरी टिप्पणी का न तो संज्ञान लिया और, न ही धन्यवाद ज्ञापन किया !
आदरणीय सुशील सरना जी आदाब, सावन के उम्दा दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
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