२२१/२१२२/२२१/२१२२
हँसना सिखाया हमने आँखों के आँसुओं को
सम्बल दिया है हरपल कमजोर बाजुओं को।१।
*
कहती है रूह उन की बलिदान जो हुए थे
पहचान कर हटाओ जयचन्द पहरुओं को।२।
*
शठ लोग अब पहनकर चोला ये गेरुआ सा
करने लगे हैं निशिदिन बदनाम साधुओं को।३।
*
उनको तमस भला क्यों जायेगा ऐसे तजकर
बैठे जो बन्द कर के दिन में भी चक्षुओं को।४।
*
कैसे वसन्त आये पतझड़ को रौंद के फिर
हर डाल न्योतती जब इस बाग उल्लुओं को।५।
*
कहते हैं उस ने की है हाथों की ढब सफाई
छूकर जो देखना है अबतक के अनछुओं को।६।
*
उनसे हुआ जो परिचय बदनामियाँ मिलेंगी
पर्दानशीं ही रखना अनजान पहलुओं को।७।
**
मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
Comment
वाह आ dh@mi सर बेहद खूबसूरत ग़ज़ल हुई है
सहृदय बधाय
जनाब लक्ष्मण धामी 'मुसाफ़िर' जी आदाब , ग़ज़ल का अच्छा प्रयास है , बधाई स्वीकार करें I
'पर्दानशीं ही रखना अनजान पहलुओं को'--इस मिस्रेव में "पर्दा नशीं " शब्द उचित नहीं है क्यों कि इसका अर्थ होता है ,पर्दे में बैठने वाली ,पाक दामन बा हया औरत , इस मिसरे में ये शब्द बदलने का प्रयास करें I
आ. लक्ष्मण जी,
अच्छी ग़ज़ल हुई है.. बधाई..
आँखों के आँसुओं कहना ठीक नहीं है.. आँसू आँखों ही के होते हैं..
हँसना सिखाया हमने अपने इन आँसुओं को
देखिएगा ..सादर
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online