बल रहित मैं हूँ भीम कहता है
तुच्छ खुद को असीम कहता है/१
*
जिसकी आदत है घाव देने की
वो स्वयम को हकीम कहता है/२
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आम पीपल को भूल बैठा वो
और कीकर को नीम कहता है/३
*
राम से जो गुरेज उस को नित
क्यों तू खुद को रहीम कहता है/४
*
धर्म क्या है समझ न पाया जो
धर्म को वो अफीम कहता है/५
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हाथ जिसका है कत्ल में या रब
वो भी खुद को नदीम कहता है/६
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लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
मौलिक/अप्रकाशित
Comment
आ. भाई तेजवीर जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए हार्दिक धन्यवाद।
आ. भाई चेतन जी, गजल पर उपस्थिति, उत्साहवर्धन व सुझाव के लिए हार्दिक धन्यवाद । बदलाव का प्रयास करता हूँ।
हार्दिक बधाई आदरणीय मुसाफ़िर जी।बहुत सुन्दर ग़ज़ल।
आदाब, भाई लक्ष्मण सिंह मुसाफिर बहुत खूबसूरत लेकिन छोटी ग़ज़ल कही आपने ! बधाई स्वीकार करें ! चौथे शे'र में, भाई जी, मुझे रब्त की क़ी जान पड़ी ! देखिएगा !
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