आया है जन पर्व जो, मकर संक्रांति आज।
गंगा तट पर सब जुटे, छोड़ सकारे काज।१।
*
आज उत्तरायण हो चले, मकर राशि पर सूर्य।
हर घाट शंखनाद अब, बजता चहुँदिश तूर्य।२।
*
निशा घटे बढ़ते दिवस, बढ़ता सूर्य प्रकाश।
भर देते हैं इस दिवस, कनकौवे आकाश।३।
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विविध प्रांत, भाषा यहाँ, भारत देश विशाल।
विविध पर्व भी हैं मगर, मनें सनातन चाल।४।
*
गंगा में डुबकी लगा, करते हैं सब स्नान।
करते पाने पुण्य फिर, अन्न धन्न का दान।५।
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कहो मकर संक्रांत या, पोंगल बीहू पर्व ।
धर्म सनातन में मने, घरघर बहुत सगर्व।६।
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गुड़ तिल लड्डू बाँटते, बनते हैं पकवान।
धुल जाते हैं पाप सब, प्रथम माध स्नान।७।
*
स्नेह भरा व्यवहार ही, है जिस का आधार।
हो सबको संक्रान्ति का, शुभ मंगल त्योहार।८।*
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मौलिक/अप्रकाशित
लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
Comment
//जिन्हें आपने जगण से शुरु बाताया है वे जगण नहीं है। जगण के उदाहरण ये हैंजैसे जमीन, किसान आदि शब्द।//
इस जानकारी के लिये धन्यवाद, आदरणीय लक्ष्मण जी। सादर।
आ. भाई अमीरुद्दीन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति व उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।
इंगित पंक्तियों को यूँ पढ़ें
आज उत्तरायण चले,' ' कर प्रथम माध स्नान'
//
जिन्हें आपने जगण से शुरु बाताया है वे जगण नहीं है। जगण के उदाहरण ये हैं
जैसे जमीन, किसान आदि शब्द। सादर..
आदरणीय लक्ष्मण धामी भाई मुसाफ़िर जी आदाब, मकर संक्रांति पर्व के अवसर पर अच्छे दोहे रचे हैं आपने हार्दिक बधाई स्वीकार करें।
'आज उत्तरायण हो चले,' 'प्रथम माध स्नान' इन चरणों में मात्राओं की संख्या कितनी गिनी है आपने,
'निशा घटे बढ़ते दिवस,' 'कहो मकर संक्रांत या,' इन चरणों को 'जगण' से प्रारंभ किया जाना क्या उचित है?
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