सलाह ...(लघुकथा )
"बाबू जी, बाबू जी । बच्चा भूखा है । कुछ दे दो ।"
एक भिखारिन अपने 5-6 माह के बच्चे को अस्त-व्यस्त से कपड़ों में दूध पिलाते हुए गिड़गिराई ।
" क्या है , काम क्यों नहीं करती । भीख मांगते हुए शर्म नहीं आती क्या । जब बच्चे पाले नहीं जाते तो पैदा क्यों करते हो ।" राहुल भिखारिन को डाँटते हुए बोला ।
"आती है साहब बहुत आती है भीख मांगने में नहीं बल्कि काम करने में आती है ।" भिखारिन ने कहा ।
"क्यों ?" राहुल ने पूछा ।
"साहब ,आप जैसे ही किसी भद्र पुरुष के कहने पर मैंने उनके घर पर काम करना स्वीकार किया था परन्तु ... ।" भिखारिन कहते-कहते रुक गई ।
"परन्तु क्या ?" राहुल ने पूछा ।
"साहब, उस भद्र पुरुष ने मेरी मजबूरी को इस कलंक से अलंकृत कर दिया ।" भिखारिन बच्चे के सिर पर हाथ फेरते हुए बोली ।
राहुल चुप हो गया । उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उस की भद्र सलाह को गाली दी हो । उसने उसे कुछ पैसे दिए और अपनी सलाह को अपने थैले में डालकर निगाह नीची कर अपने गन्तव्य की ओर कुछ सोचते हुए चल दिया ।
सुशील सरना / 30-1-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
बहुत ही मर्मस्पर्शी लघुकथा है आदरणीय..बधाई
सादर नमस्कार। बढ़िया रचना। भिखारिन के संवाद में सरल व सहज शब्दों का प्रयोग बेहतर होता। इसर चना पर.थोड़ा समय और दीजिएगा आदरणीय सुशील सरन जी।
आ. सुशील जी अच्छी प्रस्तुति। बधाई स्वीकार करें।
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