सैकड़ो शब्द हमने लिखे लैपटॉप, टैबलेट पर
कलम को जब उठाया लिखने का मज़ा आया
स्काइप और डुओ में कई बार सबको देखा
गले लग के दोस्तों से मिलने का मज़ा आया
बेतुकी सी कई बाते चैटिंग में हमने बोली
संग बैठ कर गरियाये बकने का मज़ा आया
गाना और सावन में हज़ारो गाने सुन डाले
ताल ढोलक पर जब लगाया गाने का मज़ा आया
एडिट किये है हमने फोटो कई हज़ारों
एल्बम को जो उठाया बचपन का मज़ा आया
पासवर्ड है हमारे नंबर्स और पैटर्न्स में
कुंजी को जब घुमाया ताले का मज़ा आया
व्हाट्स ऐप या हाइक हो या एफबी पर हो चर्चा
लिफाफे को जब उठाया चिट्ठी का मज़ा आया
हम फिल्मे देखते है मोबाइल में टैबलेट में
वीसीआर जो लगाया फिल्मों का मज़ा आया
इनशॉर्टस डेली हंट पे सब खबरें देखते है
आकाशवाणी को सुनके रेडियो का मज़ा आया
किंडल और ऑडिबल है उपाय कई सारे
नावेल को जब उठाया पढ़ने का मज़ा आया
ओयो, एमएमटी, ट्रीवागो सब कमरे बाटते है
नानी के घर पर जाके छुट्टी का मज़ा आया
पेटीएम, फोनपे, फ्रीचार्ज हो या हो अमेज़न
हमने नोटको भुनाया छुट्टेका मज़ा आया
ओला,हो या ऊबेर है कैब कई सारे
मीटर को जब घुमाया टैक्सी का मज़ा आया
नेटफ्लिक्स या अमेज़न या एमेक्स प्लेयर हो
सिनेमा हाल जो गए तो थियेटर का मज़ा आया
हॉटस्टार, लिव या के अम्बानी का टीवी हो
मैदान में गए तो क्रिकेट का मज़ा आया
"मौलिक व अप्रकाशित"
अमन सिन्हा
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अभिव्यक्तियाँ हृदय की भावनाओं के संप्रेषित करने का कार्य करती हैं. परन्तु, एक सजग रचनाकार को अपनी अभिव्यक्तियों के प्रति संवेदनशील रहना चाहिए. सोशल-साइटों पर जो कुछ उपलब्ध करवाया जाता है वे अपनी चलताऊ प्रकृति के कारण भावुक लोगों/ पाठकों के बीच प्रचलित भले ही हो, साहित्य की कसौटी पर ऐसी अभिव्यक्तियाँ सतही मानी जाती हैं.
यदि आप सार्थक लेखन करना चाहते हैं तो ऐसी लुभावनी प्रस्तुतियों पर समय देने और अभ्यास करने से बचें.
शुभातिशुभ
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