रोला छंद :-
धड़की बन कर याद , सुहानी वो बरसातें ।
दो अधरों की पास, सुलगती दिल की बातें ।
अनबोली वो बात, प्यार का बना फसाना ।
धड़के दिल के पास, मिलन का वही तराना ।
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दिन भर करते पाप, शाम को फेरें माला ।
उपदेशों के संत, साँझ को पीते हाला ।
पाखंडी संसार , यहाँ सब झूठे मेले ।
ढोंगी करता मौज , सज्जन दु:ख ही झेले ।
सुशील सरना / 31-3-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आदरणीय सुशील सरनाजी,
आपके दो रोले छंद और दोनों भाव के स्तर नितांत प्रच्छन्न !
वैसे दूसरा छंद किसी अतिरेक को ही शाब्दिक कर रहा है. इस तरह के सामान्यीकरण से हमें बचना चाहिए.
एक बात :
अनबोली वो बात, प्यार का बना फसाना .... प्यार की बनी अफसाना .. क्यों कि बात स्त्रीलिंग है. मतलब कि, अनबोली बात ही न प्यार का अफसाना बनी है.
सार्थक प्रयास के लिए हार्दिक बधाई
सुंदर रचना आदरणीय सुशील जी...लेकिन "दो अधरों की पास या दो अधरों के पास"
हार्दिक बधाई
सुंदर सृजन आदरणीय
जनाब सुशील सरना जी आदाब, रोला छंदों का अच्छा प्रयास हुआ है, बधाई स्वीकार करें I
'आ गई फिर याद --10 मात्रा -दूसरी बात 'ब्र्स्सतें' शब्द बहुवचन है इसलिए 'गई' की जगह "गईं" होना चाहिए' देखियेगा I
' के लगते झूठे मेले '--14 मात्रा -देखियेगा
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