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आवाज .....

सम्मान दिया
हर आवाज को
दबा कर
अपनी आवाज
स्त्री ने
तूफान आ गया
आवाज उठाई
उसने जो
अपनी 
आवाज के लिए
--------------------
वाचाल हो गया
मौन
नारी का
तोड़ कर
हर वर्जना
पुरातन की

सुशील सरना / 4-4-22

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 465

Comment

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Comment by Sushil Sarna on April 12, 2022 at 6:11pm
आदरणीय समर कबीर जी आदाब, आपकी शिकायत वाजिब है सर । इसका मुझे खेद है । भविष्य में आपकी नाराज़गी दूर करने का पूरा प्रयास करूँगा ।कृपया अपनी कृपा दृष्टि बनाये रखें । सादर नमन सर
Comment by Samar kabeer on April 10, 2022 at 2:11pm

जनाब सुशील सरना जी, देखने में आया है कि आप सिर्फ़ अपनी रचनाएँ पोस्ट करने की हद्द तक ही ओबीओ पर सक्रिय रहते हैं, मंच की दूसरी रचनाओं को न आप पढ़ते हैं न उन पर कोई टिप्पणी देते हैं,ये उचित नहीं है, कृपया इस तरफ़ ध्यान दें ।

Comment by Sushil Sarna on April 10, 2022 at 1:28pm
आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय
Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 10, 2022 at 6:41am

आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर सारगर्भित रचना हुई है । हार्दिक बधाई।

Comment by Sushil Sarna on April 8, 2022 at 10:06pm
आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 8, 2022 at 2:11am

आदरणीय सुशील सरना सर, नारी जीवन की विडंबना को अभिव्यक्त करती सार्थक प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। सादर।

Comment by Sushil Sarna on April 7, 2022 at 12:24pm
आदरणीय समर कबीर जी, आदाब, सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर
Comment by Sushil Sarna on April 7, 2022 at 12:23pm
आदरणीया डा0 प्राची सिंह जी सादर प्रणाम -सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।
Comment by Samar kabeer on April 6, 2022 at 2:23pm

जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार  करेंI 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 6, 2022 at 1:17pm

नारी के मौन का वर्जनाएं तोड़ वाचाल हो उठाना सार्थक यदि विवेक जन्य आवाज़ है तो अन्यथा चीखम चिल्ली के सिवा कुछ भी नहीं ... सिर्फ आवाज़ ही नहीं , आवाज़ की दिशा में कर्मठता भी आवश्यक है तभी नारी अपनी दशा को परिवर्तित कर सकती है अन्यथा ये आवाजें हास्यास्पद अपमानजनक हुआँ हुआँ ही रह जाती हैं 

नारी का मौन वाचालता से बड़ी आवाज़ है ये समझना चाहिए 

सुंदर अभिव्यक्ति हुई है 
बधाई सुशील सरना भाई जी 

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