आवाज .....
सम्मान दिया
हर आवाज को
दबा कर
अपनी आवाज
स्त्री ने
तूफान आ गया
आवाज उठाई
उसने जो
अपनी
आवाज के लिए
--------------------
वाचाल हो गया
मौन
नारी का
तोड़ कर
हर वर्जना
पुरातन की
सुशील सरना / 4-4-22
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सुशील सरना जी, देखने में आया है कि आप सिर्फ़ अपनी रचनाएँ पोस्ट करने की हद्द तक ही ओबीओ पर सक्रिय रहते हैं, मंच की दूसरी रचनाओं को न आप पढ़ते हैं न उन पर कोई टिप्पणी देते हैं,ये उचित नहीं है, कृपया इस तरफ़ ध्यान दें ।
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर सारगर्भित रचना हुई है । हार्दिक बधाई।
आदरणीय सुशील सरना सर, नारी जीवन की विडंबना को अभिव्यक्त करती सार्थक प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई। सादर।
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करेंI
नारी के मौन का वर्जनाएं तोड़ वाचाल हो उठाना सार्थक यदि विवेक जन्य आवाज़ है तो अन्यथा चीखम चिल्ली के सिवा कुछ भी नहीं ... सिर्फ आवाज़ ही नहीं , आवाज़ की दिशा में कर्मठता भी आवश्यक है तभी नारी अपनी दशा को परिवर्तित कर सकती है अन्यथा ये आवाजें हास्यास्पद अपमानजनक हुआँ हुआँ ही रह जाती हैं
नारी का मौन वाचालता से बड़ी आवाज़ है ये समझना चाहिए
सुंदर अभिव्यक्ति हुई है
बधाई सुशील सरना भाई जी
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