For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहली बार उसको मैंने, उसके आँगन में देखा था 

उसकी गहरी सी आँखों में, अपने जीवन को देखा था

मैं तब था चौदह का, वो बारह की रही होगी 

खेल खेल में हम दोनों ने, दिल की बात कही होगी 

 

समझ नहीं थी हमें प्यार की, बस मन की पुकार सुनी 

बचपन के घरौंदे ने फिर, अमिट प्रेम की डोर बुनी 

उसे देखकर लगता था जैसे, बस ये जीवन थम जाए 

बस उसकी भोली सूरत पर, नज़रें मेरी ठहर जाए  

कई और थे उसके साथी, पर उसने बस मुझको देखा 

उसके मन से मेरे मन तक, थी कोई एक अंजानी रेखा 

खेल खेल में हाथ पकड़ कर, फेरे कितनी बार लिए                        

प्यार हमारा सदा रहेगा, वादें कई हजार किए 

                                   

वो बचपन था कितना अच्छा, मोल भाव का मेल नहीं 

बड़े हुए तो समझा हमने, सपनों का कोई मोल नहीं                                    

बचपन बीता आई जवानी, ढेरों रंग वो ले आई 

ना जाने फिर किस कोने में, बचपन की यादें खो आई 

 

हम दोनों है अब भी संगी, पर साथी अब रहे नहीं 

ज्योत है अभी भी बाकी पर, दिया-बाती रहें नहीं 

हाथ पकड़ कर किसी और का, जीवन पथपर वो निकल पड़ी                                               

देखकर मेरी बेसुध हालत, गांव की गलियां कलप पड़ी 

                                                           

दोनों बिछडे एक-दुजे से, पर क्या हम खुश रह पाएंगे? 

क्या हम अपने दिल से बचपन, की याद मिटा भी पाएंगे ?

अच्छा होता के हम तुम दोनो, एक दुजे के हो जाते

संग मे हँसते संग मे रोते, आंख मूँद कर सो जाते 

"मौलिक व अप्रकाशित" 

अमन सिन्हा 

 

Views: 354

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by AMAN SINHA on October 5, 2022 at 10:58am

आदरणीय बृजेश कुमार जी, 

प्रोत्साहन के लिये धन्यवाद। आपको ज्ञात हो की यह रचना मेरे निजी अनुभव से बिल्कुल भी प्रेरित नहीं है। मैं कभी भी किसी के आकर्षण के लायक नहीं बन पाया। बस एक रोज़ कलम उठाई तो ये शब्द खुद हीं पन्ने पर छप गयें। आपको अच्छी लगी तो लगा जैसे लिखना सफल हो गया। 

धन्यवाद। 

Comment by AMAN SINHA on October 5, 2022 at 10:54am

आदरणीय लक्ष्मण धामी साहब, 

आपके प्रोत्साहन के लिये असंख्य धन्यवाद। 

मैं निश्चित तौर पर आप सभी के सुझावों को ध्याने में रखुंगा, और सही-सही लिखनी का प्रयास करुंगा। 

धन्यवाद। 

Comment by बृजेश कुमार 'ब्रज' on October 4, 2022 at 8:04pm

भाव अच्छे हैं क्योंकि लेखक की आपबीती लग रही...बधाई

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on October 1, 2022 at 10:22pm

आ. भाई अमन जी, अभिवादन।अच्छी प्रवाहमय रचना हुई है। हार्दिक बधाई। प्रबुद्धजनों की बातों का संज्ञान लेते हुए टंकण त्रुटियों पर भी ध्यान दें बहुवचन के साथ क्रिया के रूप पर भी ध्यान दें । मे को में लिखे। शेष शुभ शुभ....

Comment by AMAN SINHA on September 21, 2022 at 4:39pm

आदरणीय समर कबीर साहब, 

आपकी टिप्पणी के लिये तो मैं तरस गया था। जितने प्रेम से आप समझाते है वैसा कोई और नहीं समझाता। 

मैं अवश्य हीं आप सभी गुरुजनो के सुझाव पर ध्यान दूँगा और सही-सही लिखने का प्रयास करुंगा। 

धन्यवाद। 

Comment by Samar kabeer on September 21, 2022 at 4:11pm

जनाब अमन सिन्हा जी आदाब, अच्छी रचना हुई है, बधाई स्वीकार करें  I 

जनाब अशोक रक्ताले जी की बैटन पर ध्यान अवश्य दें I 

Comment by AMAN SINHA on September 20, 2022 at 8:05pm
आदरणीय अशोक साहब,
सुझाव देने के लिए आपका बहुत धन्यवाद| मैं आपके सुझाव को ध्यान मे रखूँगा|
सादर|
Comment by Ashok Kumar Raktale on September 20, 2022 at 7:25pm

आदरणीय अमन सिन्हा जी, सुंदर प्रवाहमय काव्य रचना की है आपने. बचपन का साथी, जीवन-साथी भी बने यह सौभाग्य की ही बात होती है. किन्तु सब मनचाहा हो ये कहाँ संभव है. रचना शिल्प की बात करें तो तुकांतता पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इससे रचना सौन्दर्य में कई गुना वृद्दि होती है. अभी भी या संग में लिखा जाना व्याकरण अनुसार अच्छा नहीं है. इनको क्रमशः अब भी और संग ही लिखा जाए तो बेहतर होगा.सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .इसरार

दोहा पंचक. . . .  इसरारलब से लब का फासला, दिल को नहीं कबूल ।उल्फत में चलते नहीं, अश्कों भरे उसूल…See More
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ सर, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। आयोजन में सहभागिता को प्राथमिकता देते…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरना जी इस भावपूर्ण प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। गीत के स्थायी…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सुशील सरनाजी, आपकी भाव-विह्वल करती प्रस्तुति ने नम कर दिया. यह सच है, संततियों की अस्मिता…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
yesterday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service