दोहा पंचक. . . .
साथ चलेंगी नेकियाँ, छूटेगा जब हाथ ।
बन्दे तेरे कर्म बस , होंगे तेरे साथ ।।
मिथ्या इस संसार में, अर्थहीन सम्बंध।
देह घरोंदा जीव का, साँसों का अनुबंध ।।
रह जाएगी जगत में, कर्मों की बस गंध ।
इस जग में है जिंदगी, दो पल का अनुबंध ।।
आभासी संसार के, आभासी संबंध ।
मिट जाता जब सब यहाँ, रहती कर्म सुगंध ।।
जब तक साँसें देह में, चलें देह सम्बंध ।
शेष रहे संसार में, जीव कर्म की गंध ।।
सुशील सरना / 3-2-23
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
जनाब सुशील सरना जी आदाब, अच्छी प्र्स्तुति पर बधाई स्वीकार करें I
आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए है। हार्दिक बधाई।
लेकिन यह दोहा पंक्ति में मात्राएं अधिक हो रही हैं - "बन्दे तेरे कर्म बस , चलेंगे तेरे साथ"
इसे यूँ कर सकते हैं - "बन्दे तेरे कर्म ही , जायेंगे बस साथ"
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