कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है
तिल की बातें करता है या लब की बातें करता है.
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दिल तो फिर भी धड़कन धड़कन सब की बातें करता है
ज़ह’न है साहूकार फ़क़त मतलब की बातें करता है.
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लड़ते लड़ते दुश्मन से भी हो जाता है इश्क़ अजब
जुगनू भी अक्सर दीये से शब् की बातें करता है.
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इक मुद्दत से यार! चलन से बाहर है ये लफ़्ज़-ए-वफ़ा
दिल नादान मुअर्रिख़ जैसा; कब की बातें करता है. मुअर्रिख़- इतिहास-कार
तुझ को मुझ को सब को याद है कोई लम्हा जादू सा
दिल भी तन्हाई में अक्सर तब की बातें करता है.
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उस अव्वल को समझा हो; वो आकर “नूर” से बात करे
यूँ हर ऐरा-गैरा भी मज़हब की बातें करता है.
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निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित
Comment
धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी
आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।
शुक्रिया आ. अजय जी
शुक्रिया आ. समर सर
वाह ,,, वाह बहुत ,,,, शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय आपने ,,,,
मुबारकबाद
जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने हर शे'र उम्द: है, बधाई स्वीकार करें ।
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