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ग़ज़ल 'नूर' की - कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है

कोई हुस्न-परस्त जो अपने रब की बातें करता है
तिल की बातें करता है या लब की बातें करता है.
.
दिल तो फिर भी धड़कन धड़कन सब की बातें करता है
ज़ह’न है साहूकार फ़क़त मतलब की बातें करता है.
.
लड़ते लड़ते दुश्मन से भी हो जाता है इश्क़ अजब
जुगनू भी अक्सर दीये से शब् की बातें करता है.
.
इक मुद्दत से यार! चलन से बाहर है ये लफ़्ज़-ए-वफ़ा  
दिल नादान मुअर्रिख़ जैसा; कब की बातें करता है.                         मुअर्रिख़- इतिहास-कार

तुझ को मुझ को सब को याद है कोई लम्हा जादू सा
दिल भी तन्हाई में अक्सर तब की बातें करता है.
.
उस अव्वल को समझा हो; वो आकर “नूर” से बात करे
यूँ हर ऐरा-गैरा भी मज़हब की बातें करता है.
.

निलेश "नूर"
मौलिक / अप्रकाशित 

Views: 258

Comment

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Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 17, 2023 at 6:15pm

धन्यवाद आ. लक्ष्मण जी 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on April 22, 2023 at 7:00pm

आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। खूबसूरत गजल हुई है। हार्दिक बधाई।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2023 at 2:22pm

शुक्रिया आ. अजय जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 21, 2023 at 2:21pm

शुक्रिया आ. समर सर 

Comment by Ajay Kumar on April 18, 2023 at 6:18pm

वाह ,,, वाह बहुत ,,,, शानदार ग़ज़ल कही है आदरणीय आपने ,,,,

मुबारकबाद 

Comment by Samar kabeer on April 14, 2023 at 6:23pm

जनाब निलेश 'नूर' जी आदाब, अच्छी ग़ज़ल कही आपने हर शे'र उम्द: है, बधाई स्वीकार करें ।

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