नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
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हो धरा ये पूण्यभूमि, ओजसिक्त कर्मभूमि
विशुद्ध हो विचार से, हर व्यक्ति हो खरा ||1||
हो खरा वो राजसिक, तो आन-मान-प्राण दे
जिये-मरे जो सत्य को, तनिक न हो डरा ||2||
हो डरा मनुष्य लगे, जानिये हिंसक उसे
तमस भरा विचार, स्वार्थ-द्वेष हो भरा ||3||
हो भरा उत्साह और सुकर्म के आनन्द से--
वो मनुष्य सत्यसिद्ध, ज्ञानभूमि हो धरा ||4||
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दीखते व्यवहार जो हैं व्यक्ति के संस्कार वो
नीति-धर्म साधना से, कर्म-फल रीतते ||1||
रीतते हैं भेद-मूल, राग-द्वेष, भाव-शूल
साधते विज्ञान-वेद, प्रति पल सीखते ||2||
सीखते हैं भ्रम-काट, भोग-योग भेद पाट
यों गहन कर्म-गति, वो विकर्म जीतते ||3||
जीतते अहं-विलास, ध्यान-धारणा प्रयास
संतुलित विचार से, धीर-वीर दीखते ||4||
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-- सौरभ
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Comment
शन्नोजी, आपको रचना (छंद - सांगोपांग घनाक्षरी) रुची यह मेरे लिये भी संतोष की बात है. हम परस्पर कितना कुछ जानते और सीखते हैं. इसी से सत्संग की इतनी महिमा है.
सधन्यवाद.
भाई सतीशजी, हार्दिक धन्यवाद कि रचना की पंक्तियाँ और गठन पसंद आये.
सौरभ जी,
मैं आपकी लेखन प्रतिभा से अभिभूत हूँ...आपको और आपकी लेखनी दोनों को नमन.
नाधिये जो कर्म पूर्व, अर्थ दे अभूतपूर्व
साध के संसार-स्वर, सुख-सार साधिये ॥1॥
साधिये जी मातु-पिता, साधिये पड़ोस-नाता
जिन्दगी के आर-पार, घर-बार बाँधिये ॥2॥
बाँधिये भविष्य-भूत, वर्तमान, पत्नि-पूत
धर्म-कर्म, सुख-दुख, भोग, अर्थ राँधिये ॥3॥
राँधिये आनन्द-प्रेम, आन-मान, वीतराग
मन में हो संयम, यों, बालपन नाधिये ॥4॥
निःशब्द टिपण्णी ........................ आपकी लेखनी .............. ख्यालात ............ और ज़ज्बात को सलाम मित्रवर
भाई बाग़ीजी, बहुत-बहुत धन्यवाद. आपकी बधाई मेरे लिये अत्यंत आह्लादकारी है. इस विशेष तरह की घनाक्षरी को सांगोपांग घनाक्षरी कहते हैं.
आपकी प्रशंसा खुले आम घोषणा है कि देखो ओबीओ एक रचना-प्रेमी को कैसे रचनाधर्मी बना सकता है. ओबीओ के वातावरण को मेरा सादर प्रणाम. बहुत कुछ सीखा है बहुत कुछ सीख रहा हूँ, सहयोग बना रहे
सधन्यवाद.
हार्दिक धन्यवाद रवि भाई .. . आपका सहयोग उत्साहकारी है.
आदरणीय सौरभ भईया. तीनो घनाक्षरियां एक से बढ़कर एक है, कथ्य उत्तम लगा, शिल्प के हिसाब से कवित्त का यह प्रकार बहुत ही खुबसूरत लगता है, बहुत बहुत बधाई सौरभ भईया |
sir sab ke sab chhand gyan parakh.. bahut kuchh sikhata huaa
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