For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल :- आँखों में गड़ते हैं टूटे रिश्तों के टुकड़े

 
ग़ज़ल :- आँखों में गड़ते हैं टूटे रिश्तों के टुकड़े
 
आँखों   में गड़ते हैं टूटे रिश्तों   के टुकड़े ,
नदी के तल में अटके रहते हैं कंकड़ रुखड़े |
 
पपड़ीली मुस्कान में दिनभर ख़ुद को छलते हैं ,
शाम ढले घर  लेकर हम जाते कृत्रिम मुखड़े |
 
अनुकूलित कमरों में कॉफ़ी उसपर दलित विमर्श ,
मरे हुए शहरों में ज़िन्दा गावों के दुखड़े |
 
पत्थर की मूर्ति पार्कों फ़व्वारों की ख़ातिर ,
तुम्हें ख़बर क्या इमली पीपल बरगद सब उजड़े |
 
                                       - अभिनव अरुण [11102011]
 

Views: 433

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 5:49pm
Venus ji apke sneh se abhibhoot hoon.soch raha hoon aap jaise guni jan mere ustaad ban jayen to ghazal kahna aa jaye.
shri saurabh ji aap mere aziz hain apki har baat sar ankhon par. pranaam hai.
Comment by वीनस केसरी on October 12, 2011 at 3:29pm
पपड़ीली मुस्कान में दिनभर ख़ुद को छलते हैं ,
शाम ढले घर  लेकर हम जाते कृत्रिम मुखड़े |

अभिनव जी कमाल की ग़ज़लगोई है,, आसान शब्दों में भाव को प्रस्तुत करना तो कोई आपसे सीखे
रचना खूब पसंद आई
आपको  हार्दिक बधाई

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 2:59pm

आपकी कहन और अंदाज़े बयां के हम पुराने शैदाई हैं भाई.

चूँकि, उत्कृष्ट में हर कुछ संतुलित हो तो आनन्द बहुगुणा हो जाता है. आपकी प्रतिभा के लिये इसे साधना कुछ कठिन भी नहीं. सोही, सुझाव साधिकार संप्रेषित किया है.

Comment by Abhinav Arun on October 12, 2011 at 2:20pm
abhaar adarniy saurabh shri .main sweekaar karta hoon ki ghazal kavyakaran mujhse rootha sa hai. koshish jari hai.

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 12, 2011 at 1:03pm

आपका एक-एक बंद ज़िन्दा है. बहुत ही मुग्धकारी.

इन उन्नत भावों के लिये हार्दिक बधाई,

अरुण अभिनवजी, बह्र पर थोड़ी मशक्कत पूरी ग़ज़ल को अविस्मरणीय बना देती.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-186

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 186 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा आज के दौर के…See More
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"  क्या खोया क्या पाया हमने बीता  वर्ष  सहेजा  हमने ! बस इक चहरा खोया हमने चहरा…"
Sunday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"सप्रेम वंदेमातरम, आदरणीय  !"
Sunday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

Re'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 174

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Saturday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181
"स्वागतम"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय रवि भाईजी, आपके सचेत करने से एक बात् आवश्य हुई, मैं ’किंकर्तव्यविमूढ़’ शब्द के…"
Friday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-181

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Dec 10
anwar suhail updated their profile
Dec 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
Dec 5
ajay sharma shared a profile on Facebook
Dec 4
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Dec 1
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Nov 30

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service