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एक कविता: कौन हूँ मैं?... --संजीव 'सलिल'

एक कविता:
कौन हूँ मैं?...
संजीव 'सलिल'
*
क्या बताऊँ, कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.
दूरियों को नापता हूँ.
दिशाओं में व्यापता हूँ.
काल हूँ कलकल निनादित
कँपाता हूँ, काँपता हूँ. 
जलधि हूँ, नभ हूँ, धरा हूँ.
पवन, पावक, अक्षरा हूँ.
निर्जरा हूँ, निर्भरा हूँ.
तार हर पातक, तरा हूँ..
आदि अर्णव सूर्य हूँ मैं.
शौर्य हूँ मैं, तूर्य हूँ मैं.
अगम पर्वत कदम चूमें.
साथ मेरे सृष्टि झूमे.
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं.
इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.
किरण-सोनल साधना हूँ.
मेघना आराधना हूँ.
कामना हूँ, भावना हूँ.
सकल देना-पावना हूँ.
'गुप्त' मेरा 'चित्र' जानो. 
'चित्त' में मैं 'गुप्त' मानो.
अर्चना हूँ, अर्पिता हूँ.
लोक वन्दित चर्चिता हूँ.
प्रार्थना हूँ, वंदना हूँ.
नेह-निष्ठा चंदना हूँ. 
ज्ञात हूँ, अज्ञात हूँ मैं.
उषा, रजनी, प्रात हूँ मैं.
शुद्ध हूँ मैं, बुद्ध हूँ मैं.
रुद्ध हूँ, अनिरुद्ध हूँ मैं.
शांति-सुषमा नवल आशा.
परिश्रम-कोशिश तराशा.
स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं.
पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.
केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.
सुमन पुष्पा हूँ, सुरभि हूँ.
जलद हूँ, जल हूँ, जलज हूँ.
ग्रीष्म, पावस हूँ, शरद हूँ. 
साज, सुर, सरगम सरस हूँ.
लौह को पारस परस हूँ.
भाव जैसा तुम रखोगे
चित्र वैसा ही लखोगे. 
स्वप्न हूँ, साकार हूँ मैं.
शून्य हूँ, आकार हूँ मैं.
संकुचन-विस्तार हूँ मैं.
सृष्टि का व्यापार हूँ मैं.
चाहते हो देख पाओ.
सृष्ट में हो लीन जाओ.
रागिनी जग में गुंजाओ.
द्वेष, हिंसा भूल जाओ.
विश्व को अपना बनाओ.
स्नेह-सलिला में नहाओ..
*******

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Comment

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Comment by Vikram Srivastava on November 12, 2011 at 1:44pm

आदरणीय सलिल जी.....आपकी यह रचना पढ़कर स्वयं पर गर्व होता है की मैं आप के साथ एक मंच पर हूँ....एक शाश्वत प्रश्न का बहुत गहरा उत्तर....ओ बी ओ का मैं तह-ए-दिल से शुक्रिया करना चाहता हूँ जो मुझे आप गुणी जनों के बीच रहकर सीखने का महान अवसर दे रहा है......इस बेहतरीन रचना क लिए बधाई एवं धन्यवाद....:)

Comment by Er. Ambarish Srivastava on November 1, 2011 at 11:22pm

प्रणाम आदरणीय आचार्य जी ! इस उत्कृष्ट कविता की रचना करके आपने हम पर उपकार किया है ! इस निमित्त आपको सादर नमन करते हुए निम्नलिखित पंक्तियाँ आपको समर्पित कर रहा हूँ !

स्वर्ग हूँ अपवर्ग हूँ मैं
आत्मा की कामना हूँ
चित्त से प्राकट्य तप से
गुप्त करता साधना हूँ
क्या बताऊँ कौन हूँ मैं?
नाद अनहद मौन हूँ मैं.   

सादर :

Comment by sanjiv verma 'salil' on October 31, 2011 at 10:47am

आशीष जी, सौरभ जी, अरुण जी

आपने इस रचना में पैठकर उसकी गहन पड़ताल की... आभारी हूँ. इन रचनाओं को पढ़ने-समझनेवाले विरले ही होते हैं. आपकी सराहना से इस स्तर की रचनाएँ रचने के लिए प्रोत्साहन मिलाता है. धन्यवाद.

Comment by आशीष यादव on October 30, 2011 at 9:15pm

i am everything. 

agar hm bahut gahare utre tb kahi pa sakte hai us moti ko jo is rachna me hai. sabke liye hai, shart ki gahrai me utrna hoga. bahut sundar rachna. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 30, 2011 at 1:42pm
कौन हूँ मैं? का प्रश्न हर युग में मानव के लिये सूक्ष्म से लेकर स्थूल स्तर तक सदा से शीर्षकवत् रहा है. कवि ने चेतन, अवचेतन, प्राकृतिक, मानसिक, आध्यात्मिक, वायव्य, स्थूल प्रत्येक स्तर पर एक मानव इकाई के रूप में स्वयं को पाया है और मानवीय चेतनता की सार्वभौमिकता का अनुमोदन किया है. 
 
ॐ हूँ मैं, व्योम हूँ मैं. / इडा-पिंगला, सोम हूँ मैं.  में व्याप्त सुषुम्ना भाव या उसकी गहराई हो या स्वार्थमय सर्वार्थ हूँ मैं / पुरुषार्थी परमार्थ हूँ मैं.  की निज परम हितार्थ कार्मिक होने की सात्विक उद्घोषणा हो, कवि की सत्य-स्वीकृति मुखर हुई दीखती है.
वहीं, केंद्र, त्रिज्या हूँ, परिधि हूँ.  के रूप में ज्यामितीय मानकों के अनुरूप गणना कर एक मनुष्य के तौर पर सम्पूर्ण ब्रह्मांड के सापेक्ष अपना कोऑर्डिनेट निर्धारित करना हो, कवि ने मनुष्य की परवेसिवनेस को सार्थक रूप से स्थापित किया है.
 
उच्चभावों से पगी और गहन दर्शन को इंगित करती इस रचना का पाठ मानसिक संतुष्टि का कारण बन कर सामने आया है. आचार्य सलिलजी को इस रचना के लिये सादर साधुवाद.
Comment by Abhinav Arun on October 30, 2011 at 12:11pm
एक शाश्वत प्रश्न का उत्तर देती कविता !! अपने गठीले शिल्प और विस्तृत बिम्बों के कारण अनुपम बन पड़ी है हार्दिक साधुवाद सलिल जी !!

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