(छंद - दुर्मिल सवैया)
जब मौसम कुंद हुआ अरु ठंड की पींग चढी, फहरे फुलकी
कटकाइ भरे दँत-पाँति कहै निमकी चटखार धरे फुलकी
तब जीभ बनी शहरी नलका, मुँह लार बहे, लहरे फुलकी
लफसाइ हुई पनियाइ हुई, लपिटाइ हुई, वह रे ! फुलकी ||1||
खुनकी-खुनकी अस जाड़ि क मौसम में सहमा दिन भार लगै
उपटै सब बालक-वृंद जुड़ैं, बन पाँत खड़े, भरमार लगै
घुलि जाय बताश जे पानि भरा मुँह-जीभ के बीच न सार लगै
अठ-रंग मसाल के स्वाद हैं नौ, तनि तींत भलै चटखार लगै ||2||
चुप चाव से चाट रहे चुड़ुआ चखलोल बने घुरियावत हैं
हुनके मिलिगा तिसरी फुलकी, हिन एक लिये मुँह बावत हैं
कब आय कहौ अगिला फिर नंबर, जोहत हैं, चुभिलावत हैं
जब हाड़ के तोड़ सँ जाड़ पड़े, लरिके रसना-सुख पावत हैं ||3||
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--सौरभ
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फुलकी - गोलगप्पे , गुपचुप, पानीपुरी, पानी-बताशे (इलाहाबाद परिक्षेत्र में गोलगप्पे को फुलकी कहते हैं) ; नलका - बम्बा , पानी की टोंटी ; खुनकी - सिहरन पैदा करने वाली ; उपटै - इकट्ठे आना , बहुतायत में होना ; सार - शेष बचा हुआ भाग , सिट्ठी ; तनि - कुछ , थोड़ा ; तींत - तीखा ; चड़ुआ - अंजुरी , हथेली का पात्र रूप ले लेना ; चखलोल - मुँह खोले होना , अक्सर चड़ियाँ चोंच खोले कुछ जोहती दीखती हैं ; घुरियाना - नज़दीक होने की क्रिया ; कुछ बार-बार करना ; हुनके - उनको ; हिन - ये , यह ; लरिके - बच्चे ; हाड़ - हड्डी ; रसना - जीभ
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Comment
भाई अशोकजी, हमें भी अपार खुशी है कि आपको उपरोक्त सवैया छंद रचना को सुन पाने का संयोग बन पाया. कारण चाहे जो रहा हो, चूँकि आप उक्त रचना के ऑडियो को नहीं सुन पा रहे थे यह हम सभी के लिए अबूझ पहेली सी थी. संभवतः आपके पुराने सीपीयू में ऑडियो कार्ड की समस्या रही हो. खैर, समस्या का समाधान हुआ.
मैं आपका अनुमोदन सहर्ष स्वीकार करता हूँ.
आदरणीय सौरभ जी
सुप्रभात सादर नमस्कार, आज दूसरा सीपीयू लगाकर सफलता प्राप्त हो सकी है. आज मै यह छंद सुन सका हूँ बहुत सुन्दर लय है मजा आ गया और सीखने को भी मिला. सादर.
आदरणीय वीनस जी
सादर, स्पीड कि कोई समस्या नहीं है,ब्राउसर भी मैंने बदल बदल कर प्रयास किया है.यह लिंक अब मेरे मेल बॉक्स में है तो मै इसे अन्यत्र किसी कंप्यूटर पर भी चलाने का प्रयास करूँगा. प्लगइन मिस कि तो मुझे कोई जानकारी नहीं है वरना वह भी मै डाउनलोड करता. किसी जानकार से अवश्य सलाह लूंगा.सादर.
भाई राजेशकुमार झा जी, आपको प्रस्तुत रचना-प्रयास रुचा यह मेरे लिए भी संतुष्टि तथा प्रेरणादायी है. उत्साहवर्द्धन हेतु आपका हार्दिक आभार.
वाह सरजी, ये तो कमाल है, ढूंढ-ढूंढ के ऐसे-ऐसे शब्द लाए हैं जिनके बिना फुलकी बेस्वाद ही रहती इनसे फुलकी की चटखार और बढ़ गई
घुलि जाय बताश जे पानि भरा मुँह-जीभ के बीच न सार लगै
अठ-रंग मसाल के स्वाद हैं नौ, तनि तींत भलै चटखार लगै
ये पंक्तियां तो मुंह में पानी भर गई ।
शन्नोजी, आपका पुनर्अनुमोदन सिर-माथे. रचना-पाठ आपके मनसुख का कारण हुआ है यह जान कर आत्मीय संतुष्टि हुई है. परस्पर स्नेह और आदर बना रहे, आदरणीया.
वीनसजी, अपलोडेड ऑडियो वाकई काम कर रहा है. अशोक भाई जी के एण्ड पर शायद नेट स्पीड या फिर ब्राउजर का वर्सन या ऐसी ही कुछ समस्या प्रतीत होती है.
अय हय...सौरभ जी, आज आपकी फुलकी का ठेला फिर ढूँढ लिया और मुँह में पानी आ गया. इतनी स्वादिष्ट रचना को प्लेयर पर सुनकर बड़ा आनंद आ रहा है :)
अशोक जी प्लेयर सही ढंग से कार्य कर रहा है और मैं सुन पा रहा हूँ
आप हाई स्पीड नेट यूज करें अथवा कोई 'मिस' प्लगइन डाऊनलोड करें तो शायद आप भी सुन सकेंगे
आदरणीय सौरभ जी
सादर प्रणाम, क्षमा चाहता हूँ किन्तु आज मैंने पुनः अपने डिस्क टॉप और लेप टॉप दोनों पर प्रयास किया किन्तु सफलता हासिल नहीं हो सकी आपका कहना सही है छंद सुनकर लय समझना आसान होगा. मुझे इस आडियो प्लेयर में समय 00:00/00:00 दिख रहा है उससे लगता है कहीं कोई समस्या अवश्य है.मै पुनः प्रयास करूँगा. सादर.
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