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गरीबी के अब तो जमाने हुए |

मुहब्बत से खाली खजाने हुए |

नहीं मिटता कोई, वफा के लिए 
वफा के ये किस्से पुराने हुए |

हमें माननी ही पड़ी बात बस 
कई पास उनके बहाने हुए |

नहीं है खबर को क्या हो गया 
कहें लोग हम तो दीवाने हुए |

जहाँ दिन ढला , तान लेते चादर
वहीं बस हमारे ठिकाने हुए |

नफा देखते विर्क हर बात में 
सभी लोग बेहद सयाने हुए |

         * * * * *
                      -------- दिलबाग विर्क  

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Comment

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Comment by राज लाली बटाला on February 7, 2012 at 10:32pm

दिलबाग़ जी ,इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. !!  मीटर  मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है -Regards lally 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2012 at 6:52am

दिलबाग़ जी को इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.  कदम-दर-कदम बढ़ना संतुष्ट करता है.

वाह !

Comment by dilbag virk on February 4, 2012 at 8:07pm

बागी जी, नीरज जी ,राजेश कुमारी जी 

बहुत बहुत आभार

राजेश कुमारी जी आपने सही फरमासा यहाँ की जगह जहाँ ही आना चाहिए था

गलती सुधरवाने के लिए पुन आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2012 at 7:54pm

विर्क साहब गजब की ग़ज़ल
लिखी है बहुत सुंदर लिखी हैविर्क जी अंत मे जहाँ ये शेर है 
यहाँ दिन ढला , तान लेते चादर
इसमे मुझे लगता है यहाँ की जगह जहाँ
होता या नीचे की लाइन मे यहीं होता अर्थात यहाँ के साथ नीचे यहीं और जहाँ के साथ वहीं आता गौर कीजिए क्या मैं ठीक कह रही हूँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2012 at 3:43pm

विर्क साहब अच्छी ग़ज़ल कही है, खुबसूरत ख्याल, मीटर को आपने मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है | दाद कुबूल करे |

Comment by dilbag virk on February 3, 2012 at 9:24pm

अविनाश बागडे जी और राज बुंदेला जी

बहुत बहुत आभार

सुधीजनों से निवेदन है कि वे बह्र गत गलतियाँ जरूर बताएँ

आभार 

Comment by AVINASH S BAGDE on February 3, 2012 at 8:38pm
हमें माननी ही पड़ी बात बस 
कई पास उनके बहाने हुए |NICE ONE.
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:46pm

वाह,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत,,,,,,,

क्या कहनॆ हैं,,,,,,,,,

नहीं मिटता कोई, वफा के लिए 
वफा के ये किस्से पुराने हुए |,,,,,,,,बधाई

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