गरीबी के अब तो जमाने हुए |
Comment
दिलबाग़ जी ,इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. !! मीटर मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है -Regards lally
दिलबाग़ जी को इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. कदम-दर-कदम बढ़ना संतुष्ट करता है.
वाह !
बागी जी, नीरज जी ,राजेश कुमारी जी
बहुत बहुत आभार
राजेश कुमारी जी आपने सही फरमासा यहाँ की जगह जहाँ ही आना चाहिए था
गलती सुधरवाने के लिए पुन आभार
विर्क साहब गजब की ग़ज़ल
लिखी है बहुत सुंदर लिखी हैविर्क जी अंत मे जहाँ ये शेर है
यहाँ दिन ढला , तान लेते चादर
इसमे मुझे लगता है यहाँ की जगह जहाँ
होता या नीचे की लाइन मे यहीं होता अर्थात यहाँ के साथ नीचे यहीं और जहाँ के साथ वहीं आता गौर कीजिए क्या मैं ठीक कह रही हूँ
विर्क साहब अच्छी ग़ज़ल कही है, खुबसूरत ख्याल, मीटर को आपने मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है | दाद कुबूल करे |
अविनाश बागडे जी और राज बुंदेला जी
बहुत बहुत आभार
सुधीजनों से निवेदन है कि वे बह्र गत गलतियाँ जरूर बताएँ
आभार
वाह,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत,,,,,,,
क्या कहनॆ हैं,,,,,,,,,
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