For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गरीबी के अब तो जमाने हुए |

मुहब्बत से खाली खजाने हुए |

नहीं मिटता कोई, वफा के लिए 
वफा के ये किस्से पुराने हुए |

हमें माननी ही पड़ी बात बस 
कई पास उनके बहाने हुए |

नहीं है खबर को क्या हो गया 
कहें लोग हम तो दीवाने हुए |

जहाँ दिन ढला , तान लेते चादर
वहीं बस हमारे ठिकाने हुए |

नफा देखते विर्क हर बात में 
सभी लोग बेहद सयाने हुए |

         * * * * *
                      -------- दिलबाग विर्क  

Views: 442

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राज लाली बटाला on February 7, 2012 at 10:32pm

दिलबाग़ जी ,इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई. !!  मीटर  मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है -Regards lally 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on February 5, 2012 at 6:52am

दिलबाग़ जी को इस ग़ज़ल पर हार्दिक बधाई.  कदम-दर-कदम बढ़ना संतुष्ट करता है.

वाह !

Comment by dilbag virk on February 4, 2012 at 8:07pm

बागी जी, नीरज जी ,राजेश कुमारी जी 

बहुत बहुत आभार

राजेश कुमारी जी आपने सही फरमासा यहाँ की जगह जहाँ ही आना चाहिए था

गलती सुधरवाने के लिए पुन आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on February 4, 2012 at 7:54pm

विर्क साहब गजब की ग़ज़ल
लिखी है बहुत सुंदर लिखी हैविर्क जी अंत मे जहाँ ये शेर है 
यहाँ दिन ढला , तान लेते चादर
इसमे मुझे लगता है यहाँ की जगह जहाँ
होता या नीचे की लाइन मे यहीं होता अर्थात यहाँ के साथ नीचे यहीं और जहाँ के साथ वहीं आता गौर कीजिए क्या मैं ठीक कह रही हूँ


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on February 4, 2012 at 3:43pm

विर्क साहब अच्छी ग़ज़ल कही है, खुबसूरत ख्याल, मीटर को आपने मेंटेन करने का बढ़िया प्रयास किये है | दाद कुबूल करे |

Comment by dilbag virk on February 3, 2012 at 9:24pm

अविनाश बागडे जी और राज बुंदेला जी

बहुत बहुत आभार

सुधीजनों से निवेदन है कि वे बह्र गत गलतियाँ जरूर बताएँ

आभार 

Comment by AVINASH S BAGDE on February 3, 2012 at 8:38pm
हमें माननी ही पड़ी बात बस 
कई पास उनके बहाने हुए |NICE ONE.
Comment by कवि - राज बुन्दॆली on February 3, 2012 at 7:46pm

वाह,,,,,,,,,,,बहुत खूबसूरत,,,,,,,

क्या कहनॆ हैं,,,,,,,,,

नहीं मिटता कोई, वफा के लिए 
वफा के ये किस्से पुराने हुए |,,,,,,,,बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-175
"लोक के नाम का  शासन  ये मैं कैसा देखूँ जन के सेवक में बसा आज भी राजा देखूँ।१। *…"
3 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी, कुछ और प्रयास करने का अवसर मिलेगा। सादर.."
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या उचित न होगा, कि, अगले आयोजन में हम सभी पुनः इसी छंद पर कार्य करें..  आप सभी की अनुमति…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय.  मैं प्रथम पद के अंतिम चरण की ओर इंगित कर रहा था. ..  कभी कहीं…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
""किंतु कहूँ एक बात, आदरणीय आपसे, कहीं-कहीं पंक्तियों के अर्थ में दुराव है".... जी!…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"जी जी .. हा हा हा ..  सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"अवश्य आदरणीय.. "
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ जी  प्रयास पर आपकी उपस्थिति और मार्गदर्शन मिला..हार्दिक आभारआपका //जानिए कि रचना…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।छंदो पर उपस्थिति, स्नेह व मार्गदर्शन के लिए आभार। इस पर पुनः प्रयास…"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन। छंदो पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए धन्यवाद।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन।छंदों पर उपस्थिति उत्तसाहवर्धन और सुझाव के लिए आभार। प्रयास रहेगा कि…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 163 in the group चित्र से काव्य तक
"हर्दिक धन्यवाद, आदरणीय.. "
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service