सरहद पर जाते वक्त
Comment
इस उच्च मानसिक दृढ़ता के लिये उन्नत संस्कार प्रेरित किया करते है जो प्रारम्भ से ही बूँद-बूँद पगाये जाते हैं. तभी तो, मनोमय भाव मात्र देह की दशा और आवश्यकता से ऊपर और प्रभावी हो पाते हैं. और तभी, स्पष्ट उत्तरदायित्त्व ’स्व’ के सतही स्वरूप से नहीं, बल्कि उसके अत्यंत उज्ज्वल पक्ष से संपुष्ट कर पाता है.
इस सांस्कारिक रचना के लिये आदरणीया आशाजी आपका अत्यंत आभार. बहुत दिनों बाद मैं इस पटल पर आपकी कोई रचना प्रेषित हुई देख पा रहा हूँ.
सादर
सच कंहूँ तो तेरी इस शपथ से
....मेरा माथा गर्व से तन गया था उस वक्त ..SUNDER BHAVPURN KAVITA Aasha ji.
सही कहा है आपने हम को देश के वीरों पर गर्व करना चाहिए बहुत अच्छा लिखा है आपने.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |
You need to be a member of Open Books Online to add comments!
Join Open Books Online