है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,
हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;
*
अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,
कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;
*
देखी तेरी ख़ुदाई तेरी क़ायनात में,
माँगा था बस एक शख़्स को वो भी नहीं मिला;
*
तू मुफ़्त में जो दे रहा है ऐ दिले नादाँ,
देकर कोई भी क़ीमत हासिल नहीं वफ़ा;
*
बरसों से मैं सफ़र में ही मुब्तला रहा,
अब भी वहीं खड़ा हूँ जिस दिन था मैं चला;
*
मेरे गिर्दो पेश की हर शै पे तेरा नाम है,
ये शफ़क़ोशम्स और ये महताब, ये हवा;
*
‘वाहिद’ न जाने कब से, पत्थर थीं ये आँखें,
छू लीं तो हाथ भीग गए, भर गया गला;
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मुब्तला - शामिल ; गिर्दो पेश - आसपास ; शफकोशम्स - किरणें और सूरज ;
Comment
बहत खूब
आदरणीया नीरजा जी आभार आपका|
बहुत-बहुत शुक्रिया राकेश जी| आपके लिए अर्थ यहीं दे दे रहा हूँ - मुब्तला - शामिल, गिर्दो पेश - आसपास, शफकोशम्स - किरणें और सूरज,
आपके एक फरमाइश भी है, की क्लिष्ट शब्दो के अर्थ नीचे लिख दें. धन्यवाद.
वाहिद भाई नमस्कार, बहुत सुंदर मुक्त शेर कहे हैं, "अब भी वहीं खड़ा हूँ जिस दिन था मैं चला". बहुत खूब. दिली शाबाशी
प्रशंसा के लिए तहे दिल से शुक्रिया मृदु जी| साभार,
सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय योगराज जी,
प्रशंसा के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ|
मित्र वीनस जी आपका आभारी हूँ|
आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम| आप सभी अनुभवी जनों से यही अपेक्षा है कि आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे ताकि मैं और निखर कर सामने आ सकूँ| प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ|
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