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है अर्ज़ जो तेरी मैं दूँगी उसे सुना,
हौले से मेरे कान में कहती है ये सबा;
*
अल्फ़ाज़ बहुत आसमाने दिल पर उमड़ रहे हैं,
कोई नहीं बरसता मगर बनकर मेरी दुआ;
*
देखी तेरी ख़ुदाई तेरी क़ायनात में,
माँगा था बस एक शख़्स को वो भी नहीं मिला;
*
तू मुफ़्त में जो दे रहा है ऐ दिले नादाँ,
देकर कोई भी क़ीमत हासिल नहीं वफ़ा;
*
बरसों से मैं सफ़र में ही मुब्तला रहा,
अब भी वहीं खड़ा हूँ जिस दिन था मैं चला;
*
मेरे गिर्दो पेश की हर शै पे तेरा नाम है,
ये शफ़क़ोशम्स और ये महताब, ये हवा;
*
‘वाहिद’ न जाने कब से, पत्थर थीं ये आँखें,
छू लीं तो हाथ भीग गए, भर गया गला;

******

मुब्तला - शामिल ; गिर्दो पेश - आसपास ; शफकोशम्स - किरणें और सूरज ;

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Comment by राज लाली बटाला on March 8, 2012 at 9:26pm

बहत खूब 

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 4:20pm

आदरणीया नीरजा जी आभार आपका|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 4:20pm

बहुत-बहुत शुक्रिया राकेश जी| आपके लिए अर्थ यहीं दे दे रहा हूँ - मुब्तला - शामिल, गिर्दो पेश - आसपास, शफकोशम्स - किरणें और सूरज, 

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 3:15pm

आपके एक फरमाइश भी है, की क्लिष्ट शब्दो के अर्थ नीचे लिख दें. धन्यवाद.

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 3, 2012 at 3:15pm

वाहिद भाई नमस्कार, बहुत सुंदर मुक्त शेर कहे हैं, "अब भी वहीं खड़ा हूँ जिस दिन था मैं चला". बहुत खूब. दिली शाबाशी

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 1:48pm

प्रशंसा के लिए तहे दिल से शुक्रिया मृदु जी| साभार,

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 3, 2012 at 12:38pm

सुन्दर प्रस्तुति हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:18pm

आदरणीय योगराज जी,

प्रशंसा के लिए शुक्रिया अदा करता हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:17pm

मित्र वीनस जी आपका आभारी हूँ|

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 3, 2012 at 12:17pm

आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम| आप सभी अनुभवी जनों से यही अपेक्षा है कि आप मेरा मार्गदर्शन करेंगे ताकि मैं और निखर कर सामने आ सकूँ| प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभारी हूँ|

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