हम लगायेंगे जबान पर मसाला नहीं,
अपनी गजलो में शऊर का ताला नहीं.
पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.
मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.
सावन में मिट्टी की खुशबू उनके लिए है,
जिनके घरो से होके बहता नाला नहीं.
गुटखा बेचने के लिए ट्रेनो में घूमता है,
दूध के दांत टूटे नहीं, होश संभाला नहीं.
सर झुका के भजने लिखूंगा, अगर,
सबको रोटी की फ़रियाद, टाला नहीं.
मदहोशी के कसीदो में वो कहाँ है?
जिनके आंसू में 'अम्ल' है, हाला नहीं.
Comment
सुन्दर प्रयास है
बेहतर प्रयास है, राकेशजी. बहुत-बहुत बधाई.
निवेदन : धूप लगा करती है.
बहुत बहुत असरदार ग़ज़ल -
पैरवी उनके हसीन दर्द की क्या करें,
जिनको लगा धूप नहीं, पाला नहीं.
मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही
उक्त दो शेर बहुत बढ़िया लगे हार्दिक बधाई आपको !!
Thanks Ashutosh ji.
माननीया राजेश कुमारी जी, आपकी सराहना ही कलम का जोर है, इसे बनाये रक्खे, धन्यवाद.
मान्यवर वाहिद जी, आपकी प्रशंसा सर आँखों पर.
आदरणीय प्रदीप जी,सदर नमस्कार, बस यूँ ही आशीर्वाद बनाये रहिये.
लाजवाब ग़ज़ल राकेश जी| आपकी प्रशंसा के लिए शब्द ही नहीं मिल रहे|
baut samyik samaj ki kroor sachchaai par prakash dalti hui ghazal bahut umda.badhaai sweekaren.
मेहदी की तारीफ हम कैसे कर पाएँ,
गाव मे एक हाथ नही जिसमे छाला नही.
sundar bhav, badhai.
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