"समय और भाग्य"
सब कुछ भले न सही, पर
कुछ कुछ सबको मिला है ,
और यही कुछ कुछ एहसास कराता है की
समय से पहले और भाग्य से ज्यादा
भला कभी किसी को कुछ मिला है!
तुम भले ही रोज़ नया ख्वाब देखो
खुद की तकदीर बदलने की तदबीर सोचो
दर-दर भटको और माथा टेको, पर क्या होगा?
क्या कभी तकदीर बनाने वाला भी मिला है ?
और अगर ऐसा ही आसान होता तकदीर बदलना
तो कौन रोता ख़्वाबों के टूटने पर ?
कौन बिलखता घर उजड़ने पर ?
क्यों कोई भटकता दर- दर ?
क्यों कोई झुकता उसके दर पर ?
कौन पढता दुःख की परिभाषा ?
कौन बसने देता अश्क आँखों में ?
ये मुक़द्दर की बात है "डोली"
किसी के ख़्वाबों की झालर बंधनवार बनी
किसी के ख़्वाबों की झालर बाबुल की डाल बनी
समय और भाग्य के इस खेल में
कोई सब कुछ पा गया तो कोई
टूटे ख़्वाबों के कुछ और टुकड़े पा गया.
सब कुछ न सही कोई बात नहीं
कुछ कुछ ही सही पर आँख के लिए
वो नई धार तो पा गया.
सब कुछ भले न सही, पर कुछ-कुछ वो भी पा गया.
सब कुछ भले न सही, पर कुछ कुछ सबको मिला है.
मोनिका जैन "डोली"
Comment
रचना की पंक्तियों से निस्सृत दृढ़ता भावनाओं के कालपगे होने का पर्याय है. मोनिकाजी, बहुत-बहुत बधाई.
बाबुल शब्द बबूल नहीं है क्या ?
सुन्दर भाव एवं प्रस्तुति. बधाई.
bhaav manthan me kase hue shabd ...shandar prastuti.
ये मुक़द्दर की बात है "डोली"
किसी के ख़्वाबों की झालर बंधनवार बनी
किसी के ख़्वाबों की झालर बाबुल की डाल बनी
आदरणीया मोनिका जी , भावनाओं को आपने बड़े ही करीने से संप्रेषित किया है, अतुकांत शैली में प्रस्तुत रचना खुबसूरत बन पड़ी है , बधाई स्वीकार करे ।
काफी कुछ कहती है ये रचना आदरणीय मोनिका जी | ऐसी ही रचनाएँ वक़्त के झंझावातों में आदमी को संबल देती है ! आज की मांग के अनुरूप साहित्य सृजन हेतु हार्दिक बधाई !!
पाना-खोना तो जीवन का अहम नियम है| सुन्दर भावों की प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
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