For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हमको यहाँ लूटा गया,
वादा तेरा झूठा गया.

वो कब मनाने आये थे?
हम से नहीं, रूठा गया.

चोटें तो दिल पर ही लगी,
खूं आँख से चूता गया.

जो चुप रहे, ढक आँख ले,
राजा ऐसा, ढूंढा गया.

पैसों से या फिर डंडों से,
सर जो उठा, सूता गया.

दारु बँटा करती यहाँ!
यह वोट भी, ठूँठा गया. (ठूँठ = NULL/VOID)

संन्यास ले, बैठा कहीं,
घर जाने का, बूता गया.

नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?
दिन आज भी रूखा गया.

खोजा "खुदा" वो ता-उमर!
आगे से इक भूखा गया.

पीछे रहा है 'बस्तिवी'!
सर पर नहीं कूदा गया.

Views: 646

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by राकेश त्रिपाठी 'बस्तीवी' on March 24, 2012 at 11:43am

आदरणीय प्रदीप जी, श्री राजीव जी, श्री सौरभ जी एवं श्री संदीप भाई साहब, आप लोग ने मेरे लिए जो कमेन्ट रख छोड़े हैं, उनका बड़ा महत्त्व है रचना के लिए. आप सभी भद्र जनों को मेरा हार्दिक आभार.

 
माननीय सौरभ जी, सादर! मैंने बह्र-ए-रजज मुरब्बा (२२१२/२२१२) में कहने की कोशिश की है. रदीफ़ 'गया' लिया है और काफिया 'आ'. यथा शक्ति सारी मात्राएँ भी गिनी है, कहीं कहीं जरून 'अं' की बिंदी को २ कभी १ मात्रा में गिना है, क्या ये सही है? आपसे सविनय निवेदन है की अन्य गलतियों को भी चिन्हित करें आगे का मार्ग दर्शन करें. (मेरे मामले में आप निश्चिन्त रहें, हमें गलतियाँ दोहरेने से ज्यादा अच्छा गलतियाँ सुधiरने में लगता है :))

Comment by CA (Dr.)SHAILENDRA SINGH 'MRIDU' on March 24, 2012 at 11:16am

हमको यहाँ लूटा गया,
वादा सभी झूठा गया.

वो कब मनाने आये थे?
हम ही से ना, रूठा गया.

श्री राकेश सर जी क्या खूब कहन है ,मेरी बधाई स्वीकार करे

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on March 24, 2012 at 11:00am

नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो?
दिन आज भी रूखा गया. 

खोजा "खुदा" ता-उमर!

सामने से एक भूखा गया.

पीछे रहा है 'बस्तिवी'!
कंधे पे ना कूदा गया

कह दिया -कह दिया , सब कुछ कह दिया. स्नेही राकेश जी सादर बधाई 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 24, 2012 at 10:59am

भाई राकेशजी, आप अपनी ग़ज़ल की बह्र का वज़्न दें. भाव और कहन तो माशाअल्लाह अच्छे होने ही हैं, आपके अंदर का कवि सहृदय ह नहीं जागरुक भी जो है. अब उस कवि की उन्नत भावनाओं को अनुकूल विधा मिलनी ही चाहिये, जिसके लिये आपको प्रयासरत रहना स्वयं की भावनाओं की इज़्ज़त करना होगा.

हार्दिक शुभेच्छाएँ.

Comment by RAJEEV KUMAR JHA on March 24, 2012 at 10:10am

बहुत सुन्दर कविता,राकेश जी.क्या खूब पंक्तियाँ हैं....

नव वर्ष 'मंगल' कैसे हो? दिन आज भी रूखा गया. खोजा "खुदा" ता-उमर!

सामने से एक भूखा गया. पीछे रहा है 'बस्तिवी'! कंधे पे ना कूदा गया.
Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on March 24, 2012 at 10:09am

प्रिय राकेश भाई,

हर एक शे'र एक नयी बात कह रहा है| सबके मज़मून अलग़ हैं| मगर मक़्सद एक ही है| बहुत ख़ूब| आपका क़ाइल तो पहले ही से हूँ| बहुत ही बढ़िया|

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
11 hours ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
11 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
15 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद  रीति शीत की जारी भैया, पड़ रही गज़ब ठंड । पहलवान भी मज़बूरी में, पेल …"
18 hours ago
आशीष यादव added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला

दियनवा जरा के बुझावल ना जाला पिरितिया बढ़ा के घटावल ना जाला नजरिया मिलावल भइल आज माहुर खटाई भइल आज…See More
Thursday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Nov 17

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Nov 17
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 16
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Nov 16

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service