और किसको शाद करने जा रहे हो
क्यों मुझे बरबाद करने जा रहे हो
बज्म में चर्चा मेरी बदनामियों का
और तुम इरशाद करने जा रहे हो
जो हकीकत थी सुनानी तुम उसे ही
अन- कही रूदाद करने जा रहे हो
जिस चमन में फूल नफरत के उगे हैं
तुम उसे आबाद करने जा रहे हो
ठोकरों से चोट खाकर पत्थरों के
द्वार पर फरियाद करने जा रहे हो
..................................... अरुन श्री !
Comment
वीनस केसरी सर , आपकी सराहना से मन अभिभूत हुआ ! आपसे शिल्पगत बारीकियों के बारे में जानकारी की अपेक्षा है ! सादर !
राजेश कुमारी मैम , सराहना के लिए धन्यवाद !
shandar bhav yukt gajal. badhai .
भाई अरुण जी, आपकी इस ग़ज़ल से मन तर गया. शिल्प और कहन दोनों तरह से यह ग़ज़ल कसी हुई है.
वैसे सतत अभ्यास आपकी संप्रेषणीयता को और कस देगी, जिसका मुझे अदम्य विश्वास है. ऐसा इसलिये कह रहा हूँ कि फूल नफ़रत के उगाता है चमन वो में वो भरती का लग रहा है. लेकिन बज़्म में चर्चा .. वाला शे’र बहुत पसंद आया है. यह शे’र मसल की तरह प्रयुक्त होगा.
बहुत-बहुत शुभकामनाएँ. आपका प्रयास यों ही निरंतर रहे.
बेहतरीन ग़ज़ल के लिए तहे - दिल से ढेरो दाद क़ुबूल करें
यह हासिले ग़ज़ल शेर लगा ---
बज्म में चर्चा मेरी बदनामियों का
और तुम इरशाद करने जा रहे हो
वाह वाह वा
vaah vaah lajabaab ghazal Arun ji daad kabool karen.
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