ये झुग्गियां
बांस और फूस से बनी,
चटाई से घिरी
गंदे स्थान पर,
शहर के कोढ़ की तरह
दिखती हैं.
ये झुग्गियां
बड़ी अट्टालिकाओं के
आजू-बाजू,
जैसे ये
उनका मुंह चिढ़ा रही हों!
इन झुग्गियों में रहने वाले
मिहनत-कश इंसान होते हैं
महलों को बनाने वाले
कारीगर होते हैं
सपनो के बाजीगर होते हैं
ये सजाते है
सेहरे, डोलियाँ,सेज
ये सजाते हैं
मंच, आयोजन स्थल, प्रवचनशाला
ये बिखेरते है खुशबू, फूलों की
करते है इत्र से इबादत
करते हैं इन्सान की इबादत
रहते है, बड़े शांत और प्रसन्नचित्त
क्योंकि इनके पास भी है
टी वी और बांस पे टंगी डिश एंटीना
इनमे होती है जिन्दगी
ज्यादा खुशनुमा.
इन झुग्गियों की महिलाये
शिकायत नहीं करतीं
अपने पतियों से
क्यों नहीं लाये
फूलों के गजरा, मोतियों के हार!
जिनके लिए हमारी पत्नियाँ
रहती हैं बेक़रार!
ये सूंघती हैं पसीने की खुशबू को
देती है प्यार का अहसास
क्योंकि इन्हें तो पता होता है
इनके पति क्या करते हैं
क्योंकि यह भी तो होती है
हर कदम पे साथ साथ!
इन झुग्गियों में कभी चोरी नहीं होती
क्योंकि हर सामान
होता है सार्वजनिक
एक रिक्शावाला
या ठेलेवाला
होता है सबका सहारा
किसी का बच्चा भी
होता है सबका प्यारा
प्राकृतिक आपदाएं
आती है कभी कभी
उड़ा ले जाती हैं इनके
प्लास्टिक और फूस के छत भी
अग्निदेव निगल जाते हैं
इनकी मनोरम कुटिया को
पर ये घबराते नहीं
क्योंकि,
इन्होने हारना सीखा ही नहीं
इनके पास होता है गीता ज्ञान!
क्या लेकर आए थे
और क्या लेकर जाना है
सब कुछ है यहीं का
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है.
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है!
(गीता सार -२
तुम्हारा क्या गया ,जो तुम रोते हो ?तुम क्या लाये थे ,जो तुम ने खो दिया ?तुमने क्या पैदा किया था ,जो नाश हो गया ?न तुम कुछ लेकर आए ,जो लिया ,यहीं से किया १ जो दिया यहीं पर दिया !जो लिया इसी (भगवान ) से लिया ! जो दिया इसी को दिया ! खाली हाथ आए ,ओर खाली हाथ चले ! जो आज तुम्हारा है , कल किसी ओर क़ा था ! परसों किसी ओर क़ा होगा ! तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो ! बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दू:खों क़ा कारण है ! )
Comment
आदरणीय नगाइच साहब, उत्साह वर्धन के लिए आभार!
bahut hi sunder rachna... bahut hi rochak ... bahut badhayee Jawahar Lal Singh sahab..
बढ़िया चित्रण है भाई, किन्तु कथ्य में कुछ कमियां अवश्य है, झुगियों में भी चोरिया होती है, वहां भी होती है पति से प्रेम पूर्वक झगड़ने वाली पत्नियाँ, वो भी मांगती है साड़ियाँ, उन्हें भी चाहिए होता है दोनों में भर कर जिलेबियां, एक फूल उनके बालों की भी शोभा बढ़ा सकता है, प्यार मनुहार, रूठना मनाना सब कुछ तो होता है |
बहरहाल बधाई इस सुन्दर कृति पर |
मिहनत-कश इंसान होते हैं
महलों को बनाने वाले
कारीगर होते हैं
सपनो के बाजीगर होते हैं
ये सजाते है
सेहरे, डोलियाँ,सेज
प्रिय जवाहर जी बहुत खूब कोई तो इनके मन की टीस सुने ..इन्हें सम्मान दे ..बधाई आप को ...कर्म ही पूजा है..मुंह चिढाती झुग्गियों को तो उखाड़ फेंकने की कवायद बस ..सुन्दर रचना
इन्होने हारना सीखा ही नहीं
इनके पास होता है गीता ज्ञान!
क्या लेकर आए थे
और क्या लेकर जाना है
सब कुछ है यहीं का
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है.
एक दिन तो यहीं छोड़ जाना है!
इन झुग्गियों की महिलाये
शिकायत नहीं करतीं
अपने पतियों से
क्यों नहीं लाये
फूलों के गजरा, मोतियों के हार!
जिनके लिए हमारी पत्नियाँ
रहती हैं बेक़रार!
आदरणीय सिंह साहब जी , सादर अभिवादन , हमेशा की तरह ,सुन्दर वाह क्या लिखा है, बधाई. किस किस अंश को चिन्हित करून, सम्पूर्ण अच्छी.
आदरणीय मृदु जी, सादर अभिवादन! आपने मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिए आभार!
आदरणीय संदीप जी, सादर अभिवादन! आपने मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिए आभार!
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