कितना अच्छा लगता है
यूँ अनायास मिलना
दुनियाँ के गलियारों में
साथ-साथ फिरना
अभी छू गई है
पुरवाई गालों को
दे गया चुनौती कौन
दर्द के उबालों को
दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
कितनी भारी है
आँखों का सूनापन
सोया सा लगता है
सांसों का सूनापन
मन से टकराता है
ऐसे सन्नाटा
कंठ में चुभे जैसे
सेही का कांटा
पोर पोर में सरसों फूली
आँखें रसमसाती
मधु अतीत की सुगंध पीकर
पांखें कसमसाती
Comment
आदरणीय राजिव जी, बहुत ही अच्छी रचना, बधाई आपको |
आदरणीय राजीव जी , सादर अभिवादन , हमेशा की तरह ,सुन्दर भाव पूर्ण रचना. बधाई.
अभी छू गई है
पुरवाई गालों को
दे गया चुनौती कौन
दर्द के उबालों को
भावाभियक्ति एवं मर्म का स्पष्ट चित्रण करती रचना पर बधाई स्वीकार करें सर
दहलीज को चूम रहे
आँगन अमलतास के
उधेड़ दो न अब घूंघट
क्षणजीवी प्यास के
आदरणीय राजीव जी, इन् पंक्तियों ने निरुत्तर कर दिया| कितने उदात्त भाव हैं इनमें| मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
bahut hi sundar bhaav ,shabd chayan ,lay ....bahut badhia.....badhaai aapko is sundar rachna ke liye.
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