अभिव्यक्ति - आखिरी वक़्त मुझे माँ ने दुआ दी होगी !
चमक लिबास में जो शख्स आम लगता है ,
उसी के छदम इरादों से जाम लगता है |
मैं हूँ खादी जिसे इस मुल्क ने पूजा था कभी ,
आज गाली की तरह मेरा नाम लगता है |
त्याग बलिदान समर्पण का कभी थी ज़रिया ,
अब सियासत में घोटालों का झाम लगता है |
ऐसा विद्रूप तेरा चेहरा सियासत क्यों है ,
क्यों सभी दूर से करते प्रणाम लगता है |
एक बाज़ार की तरह ही तो संसद है जहां ,
कितना अफ़सोस कि सांसद का दाम लगता है |
ये व्यवस्था अगर सच से यूँ ही घबराती रही ,
शायरों के भी सर होगा ईनाम लगता है |
उंगलियाँ जब भी उठाता यहाँ अन्ना कोई ,
क्यों कहा जाता कि संघ का ये काम लगता है |
सच तेरी जाति नहीं धर्म नहीं भाषा नहीं ,
तू ही मुझको रहीम और राम लगता है |
आखिरी वक़्त मुझे माँ ने दुआ दी होगी ,
उसी से बा असर मेरा कलाम लगता है |
- अभिनव अरुण [15042012]
[ आत्मकथ्य :- साथियो ! लिखा ग़ज़ल सोच कर ही है ; पर जानता हूँ यह उस्तादों की कसौटी पर शायद ही खरी उतरे | सो पहले खेद व्यक्त करता हूँ | इसे एक कविता की तरह ही परखें - पढ़े - साहित्यिक आनंद लें यही चाह है , बस | ]
Comment
आदरणीय श्री सुरेन्द्र जी , आपकी प्रतिक्रिया उत्साहवर्धक है आभारी हूँ !
उंगलियाँ जब भी उठाता यहाँ अन्ना कोई ,
क्यों कहा जाता कि संघ का ये काम लगता है |
सच तेरी जाति नहीं धर्म नहीं भाषा नहीं ,
तू ही मुझको रहीम और राम लगता है |
अभिनव जी दमदार गजल ..बड़े करीने से सजाया गया ये आप का काम लगता है ..सुन्दर ..
उंगलियाँ जब भी उठाता यहाँ अन्ना कोई ,
क्यों कहा जाता कि संघ का ये काम लगता है
आखिरी वक़्त मुझे माँ ने दुआ दी होगी ,
उसी से बा असर मेरा कलाम लगता है
बड़े भईया, सादर नमस्कार, आपकी रचनाओं का तो मैं उसी समय से फैन हूँ जब जागरण की प्रतियोगिता में आपका रजा बनारस वाला गीत पढ़ा था| आपकी ये ग़ज़ल बेहद दमदार और असरदार है| ख़ास तौर से ऊपर जो दो शे'र दिए हैं वो बहुत ज़्यादा पसंद आये| हार्दिक बधाई स्वीकार करिये| :-)
अरुण सर, फिर से एक जोरदार प्रस्तुति। गजल है या कविता इससे फर्क नही पड़ता भाव जोरदार होना चाहिये जो कि आपकी इस रचना मे है।
मेरी बधाई स्वीकार कीजिए
अरुण जी आपकी pratikriya मेरे भीतर के रचनाकार के लिए उर्जा है हार्दिक आभार आपका !!
मैं हूँ खादी जिसे इस मुल्क ने पूजा था कभी ,
आज गाली की तरह मेरा नाम लगता है | ................. वाह , कितना सटीक व्यंग करता शे'र
आखिरी वक़्त मुझे माँ ने दुआ दी होगी ,
उसी से बा असर मेरा कलाम लगता है |......................... सर आँखों पर बिठाने योग्य शेर !
पूरी गज़ल ही दमदार बनी है ! सादर !
bahut शुक्रिया आदरणीय श्री अरुण जी !!
मैं हूँ खादी जिसे इस मुल्क ने पूजा था कभी ,
आज गाली की तरह मेरा नाम लगता है |
बहुत सुन्दर .. बधाई .
श्री JAWAHAR LAL सिंह जी आपका स्नेह बना रहे हार्दिक धन्यवाद आपका !!
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