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बहुत बहुत आभार आदरणीया रेखा जोशी जी |
आदरणीय बागी जी ,अपनी इज्ज़त की खातिर औरत को कैसे कैसे कवच ओढ़ने पड़ते है |बढ़िया रचना ,बढ़िया प्रस्तुति,बधाई
प्रिय शैलेन्द्र मृदु जी, आभार आपका |
आदरणीय श्री अम्बरीश भाई , सराहना हेतु बहुत बहुत आभार |
आदरणीय बागी सर सादर नमन, इस लघु कथा में यथार्थ के मार्मिक चित्रण पर ह्रदय से हार्दिक बधाई स्वीकार करें
आदरणीय भाई बागी जी ! दिमाग को सन्न कर देने वाली कथ्य और शिल्प के लिहाज़ से एकदम सधी हुई इस सशक्त रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें !
आज के इस खतरनाक दौर में भरी जवानी में विधवा हुई इक सती सावित्री को अपनी अस्मत बताने के लिए क्या क्या लांछन सहन नहीं करने पड़ते......यहाँ तक कि वह एड्स जैसी खतरनाक बीमारी की झूठी चादर ओढ़ने को विवश है ......
हा....हा.....लाला भाई ने ही तो परदा कहानी की याद दिलाई है...
धन्यवाद शुभ्रांशु भाई ..हो सके तो एक बार लाला भाई को भी यह लघु कथा पढ़वा दीजियेगा :-)
प्रणाम आदरणीय प्रदीप कुशवाहा जी, यह सब आप बड़ों का आशीर्वाद और माँ सरस्वती की कृपा है | सराहना हेतु आभार आपका |
बहुत बहुत आभार आदरणीया वंदना गुप्ता जी |
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