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लघुकथा : कवच

पूरे मोहल्ले में यह चर्चा थी कि गुड़िया को एड्स की बीमारी है | दरअसल उसका पति एक सरकारी मुलाज़िम था जो कि सिर्फ़ २५ वर्ष की आयु में ही अचानक किसी रहस्यमयी बीमारी का शिकार होकर दुनिया छोड़ गया था | एड्स पर काम कर रही एक स्वयंसेवी संस्था के कार्यकर्ता बहुत समझा-बुझा कर गुड़िया को एड्स की जाँच करवाने अपने साथ ले गए थे | गुड़िया को जो सरकारी पेंशन मिलती थी उसी से किसी तरह अपना जीवन यापन कर रही थी |
 
जाँच करने वाले डॉक्टर ने बड़ी हैरानी से पूछा कि रिपोर्ट में तो तुम्हें कोई बीमारी नहीं है, तुम तो बिल्कुल स्वस्थ हो, फिर यह एड्स का अफ़वाह क्यों ? तुम लोगों को मुँहतोड़ जवाब क्यों नहीं देती ? हाथ जोड़ कर गुड़िया बोली,"डॉक्टर साहिब, आप से विनती है यह बात किसी से भी मत कहिएगा, एक जवान बेवा अपनी इज़्ज़त खूँखार भेड़ियों से अभी तक इसी अफ़वाह के सहारे ही बचाती रही है, भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए...... !"

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मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 5:09pm

ब्रिज भाई धन्यवाद |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 5:09pm

आदरणीय प्रधान संपादक जी, लघु कथा के पुरोधा से तारीफ़ पाना मेरे लिए बहुत बड़ी बात है, यह बताना भी यहाँ यथोचित है कि लघु कथा सृजन कि प्रेरणा मुझे आप से ही मिली है |

बहुत बहुत आभार आदरणीय |

Comment by Brij bhushan choubey on April 16, 2012 at 2:33pm

जबरजस्त ....दिमाग शन्न कर गयी ये लघु कथा |


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on April 16, 2012 at 2:30pm
//भगवान् के लिए मेरा यह कवच मुझ से मत छीनिए //
.
ओफ्फ्फ्फ़ !!! हद है भाई आपकी इस ऊंची उड़ान की. इतनी बड़ी बदनामी को कवच की तरह ओढ़ने की विवशता बिना कहे ही बहुत कुछ कह गई.
कथ्य और शिल्प के लिहाज़ से बेहद सधी हुई इस सशक्त लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई प्रिय गणेश बागी जी. 



मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 12:58pm

आदरणीय अरुण कान्त शुक्ला जी , कहानी पसंद करने हेतु धन्यवाद आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 12:57pm

आदरणीय अरुण अभिनव जी, आपकी सराहना सकरात्मक उर्जा का संचरण करती हुई प्रतीत होती है, बहुत बहुत आभार आपका |


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 16, 2012 at 12:52pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आप की टिप्पणी एक तरह से अनुमोदन है कि मैं लघु कथा लिख पा रहा हूँ :-) सच कहूँ तो एक तरह से सबल मिला है आगे कुछ और करने हेतु, बहुत बहुत आभार |

Comment by अरुण कान्त शुक्ला on April 16, 2012 at 12:44pm

समाज की वास्तविकता को उजागर करती कहानी , वो भी आधुनिकता लिए हुए . बधाई स्वीकार करें .

Comment by Abhinav Arun on April 16, 2012 at 12:24pm
आदरणीय श्री बागी जी ! लघुकथा के प्रत्येक निकष पर सटीक , खरी और सशक्त किस्सा गोई इस रचना की विशिष्टता है | इस हेतु आप सादर हार्दिक बधाई स्वीकारें | आज के हालात पर मार्मिक रूप से हस्तक्षेप करती कथा के लेखक के रूप में आपने एक साहित्यकार के महती दायित्व का निर्वहन किया है इस हेतु हार्दिक साधुवाद !!

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2012 at 10:19am

भाई गणेशजी, शब्दशः सधे हुए इस लघुकथा के लिये आपको हृदय से बधाई तो दे ही रहा हूँ, मैं तो अभिभूत हूँ, इस लघुकथा के शिल्प पर जो शीर्षक, कथ्य से लेकर आखिरी पंक्ति तक कसावट के लिहाज से भी लघुकथा के अनुशासन को जीता हुआ है.

इस सशक्त प्रयास द्वारा आपने ओबीओ मंच पर लघुकथा लेखकों के लिये एक उदाहरण प्रस्तुत किया है.

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