Comment
सौरभ सर , आपकी दृष्टि पड़ी मैं धन्य हुआ !
और इतनी प्रशंसा तो संभालना मुश्किल है ! :)) :))
इस बधाई में आप भी हिस्सेदार हैं ! सादर
रोहित शर्मा जी , कोई बात नही ये सबक दूसरी बार गलती नही करने नही देगा ! :)) :))
बहरहाल आपको धन्यवाद !
प्राची मैम , मेरे एहसास आप तक पहुच सके तो शब्दों में उन्हें बांधना सफल रहा ! आभारी हूँ !
अरुन पाण्डेय सर , आपकी सराहना ने गौरवान्वित किया ! धन्यवाद !
संदीप जी , आपकी सराहना हेतु धन्यवाद !
kis naye andaj se abhivyakti, badhai.
vaah kitne sundar bhaav jab vo ghadi nikal jaati hai bas pachhtaane ke siva kuch bhi nahi rahta kaash us din ek panna palat kar dekh liya hota.
तो अनायास ही
हाथों में आई वो किताब !
थरथरा गया अस्तित्व !
जैसे कोई रेल गुज़री हो
किसी पुराने पुल से !
बिखर गए किताब के पन्ने !
और पन्नों के बीच
एक सुख चुका गुलाब
जो मैंने नही रखा था !
अद्भुत ! अद्भुत !!
अरुणजी, आपकी इस कविता को मेरी पढ़ी हुई आपकी सबसे सशक्त कविताओं में से एक समझता हूँ. कथ्य को आपने जिस ढंग से प्रतिरोपित किया है वह कचोटते हृदय की टीस की तीव्रता और बढ़ा जाता है. बहुत-बहुत बधाई हो.
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