मनु और राकेश इंजीनियरिंग कोलेज में साथ - साथ पढ़ते थे. न जाने कब एक दूसरे को चाहने लगे पता ही नहीं चला. प्यार बिजली की तरह होता है जो दिखता तो नहीं महसूस होता है. प्यार की परिणिति विवाह के पवित्र सूत्र बंधन में हुई. यद्दपि कि प्रारंभ में परिवार, रिश्तेदारों और समाज के काफी विरोध का सामना इन दोनों को करना पड़ा , और विरोध स्वाभाविक भी था. खुद के परिवार में ऐसा हो जाये तो लोग खामोश रहते हैं अगर अन्य जगह ऐसा प्रकरण सामने आये तो फिर क्या कहने. सात पीढ़ियों तक के गुणगान किये जाते हैं. प्रेम विवाह कोई इसी युग की बात नहीं है, यदि इतिहास के पन्नों को पलटा जाये तो कई उदहारण सामने आयेंगे. आज भी समाज में अंतरजातीय विवाह और प्रेम विवाह को समुचित स्थान नहीं मिला है. पर ये देखा गया है कि समय बीतने पर सब बातें भूल कर वे अपने बच्चों को स्वीकार कर लेते हैं और समाप्त हो जाती हैं सारी दूरियां , समयावधि कुछ कम या कुछ अधिक हो सकती है. और समाज भी अपने काम में लग जाता है.
ऐसा ही कुछ मनु और राकेश के साथ भी हुआ. प्रेम विवाह से परिवार की आहत भावनाओं को भरने एवं समरसता लाने के उद्देश्य से राकेश ने मनु को नौकरी नहीं करने दी. मनु ने राकेश की भावनाओं को समझते हुए उसकी बात सहर्ष स्वीकार कर ली. परिवार में साथ रहकर अपने सेवा भाव से सास, ससुर, देवर और ननद का दिल जीत लिया. और मनु जीतती भी क्यों नहीं. मनु बचपन से प्रगतिशील विचार से युक्त साहसी रही. हर चुनौती को स्वीकार करने की उसकी भावना उसे जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्रदान करती गयी. मनु की व्यवहार कुशलता से पास पड़ोस के लोग भी प्रभावित थे. हरेक की मदद करने में वो सबसे आगे जो रहती थी. विवाह के शुरुआती दौर में जो पीठ पीछे कटाक्ष सुनाई पड़ते थे अब वो बहुत पुरानी बात हो गयी थी. पास पडोसी भी मनु के कार्यों से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके और अब उसे उचित सम्मान भी देने लगे थे.
समय तेजी से भाग रहा था . विवाह के पश्चात जो प्रबल इच्छा सास ससुर , पति पत्नी और घर परिवार में सबसे ज्यादा जाग्रत रहती है वो वंश वृद्धि की होती है. और इसका इंतजार समाप्त हुआ, मनु गर्भवती हो गयी. आने वाले बालक को लेकर सभी अपने अपने हिसाब से ताने बने बुनने लगे. मनु और राकेश की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहा. राकेश कहता कि मुझे सुन्दर सी गुडिया चाहिए. मनु राकेश के सीने में अपने को छुपाते हुए धीरे से कहती क्या ये मेरे बस की बात है. भगवान् जो चाहेगा वो ही होगा. भगवान् आपकी हार्दिक इच्छा पूर्ण करे. क्या नाम रखा जाये इसके लिए किताबें और अंतर्जाल का सहारा लिया गया. नामकरण हेतु मनु ने अपनी भावनाओं को व्यक्त न करते हुए परिवार के साथ ही अपनी सहमति व्यक्त की. पढ़े लिखे अच्छे संस्कार युक्त परिवार होने के नाते स्वस्थ माँ और स्वस्थ बच्चा के सिद्धांत को द्रष्टिगत रखते हुए मनु की उचित जांच नर्सिंग होम में कराये जाने का निर्णय लिया गया.
मनु कि विधिवत जांच हेतु फोन द्वारा नर्सिंग होम से समय ले लिया गया. राकेश, मनु और मनु की सास देवकी और पड़ोस की एक महिला, सरला चाची जिनका परिचय नर्सिंग होम में अच्छा था समय से पहले नर्सिंग होम पहुँच गयीं. नर्सिंग होम के गेट पर अन्य जानकारी के साथ एक बोर्ड पर बड़े बड़े अक्षरों में लिखा था भ्रूण की जांच करना कानूनन अपराध है . सारी जांच हो जाने के बाद देवकी ने राकेश और मनु से कहा कि हम लोग यहाँ रुके हैं तुम लोग घर चले जाओ. मनु को घर छोड़ कर राकेश तुम ऑफिस चले जाना मैं और सरला चाची रिपोर्ट लेकर घर चले जायेंगे बार बार आने जाने का झंझट कौन करे. राकेश मनु को घर छोड़ कर ऑफिस चला गया. मनु थक गयी थी सो विश्राम हेतु अपने कमरे में चली गयी. कुछ देर बाद ही देवकी रिपोर्ट लेकर घर पहुँच गयी.
देवकी ने बैग तो बाद में रखा एक जोरदार आवाज लगाई अजी सुनते हो. पतिदेव वासुदेव जी जो हमेशा सुनते हुए भी अनसुना दिखने के आदी थे ,ने प्रत्युत्तर में हांक लगाई अरे नहीं भी सुनता तो क्या तुम मुझे बगैर सुनाये रह भी सकोगी. हाँ कहो क्या बात है क्यों जलेबी की तरह मुहं बना रही हो सुबह तो रसमलाई थीं, अब क्या हो गया. अरे होना क्या है जो होना था वो हो चुका, डाक्टर ने बताया है कि लड़की पैदा होगी. वासुदेव प्रसन्नता से उछल पड़े और जोर जोर से गाने लगे मेरे घर आई एक नन्ही परी . प्रसन्नता के मारे सारा घर सर पर उठा लिया. घर के सारे सदस्य शोर सुनकर एकत्रित हो गए. और जानकारी प्राप्त होने पर कि बगिया में एक मासूम सी कली खिली है, वे भी प्रसन्नता में सम्मिलित हो गए. देवकी के चेहरे पर जो प्रसन्नता सुबह थी वो इस समय गायब थी .ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी असमंजस में है और निर्णय नहीं ले पा रही हों कि क्या करना उचित होगा. चिंता की लकीरें देवकी के माथे पर स्पष्ट रूप से देखी जा सकती थीं . क्या बात है भागवान ये उत्सव का समय है और तुम किस चिंता में डूब गयी हो, कुछ बताओ तो. लड़की जन्म लेगी, समझे. वासुदेव बोले कि तो क्या है प्रथम लड़की का जन्म तो भाग्य की निशानी है. इसी बहाने गृहस्थी भी बन जाती है और पैसा भी इकठ्ठा हो जाता है. लड़कियां अपने माँ बाप को बहुत चाहती हैं . दुःख सुख में बहुत ध्यान रखती हैं. तुम्हे अब याद नहीं क्या जब राकेश के बाद जयेश पैदा हुआ तो तुम ज्यादा प्रसन्न नहीं हुईं थी क्यों की तुम राकेश के बाद एक लड़की चाहती थी. जयेश के बाद जब सोनी ने जन्म लिया तब कितनी खुश हुईं थी. कितनी बड़ी दावत दी थी जो जयेश के पैदा होने में नहीं दी थी. और आज तुम ही लड़की के जन्म लेने पर खुश नहीं हो, जबकि तुम स्वयं एक संस्कारित भारतीय नारी हो. क्या हो गया है तुम्हें. एक बात ये बताओ की भ्रूण जाँच कराना, करना कानूनन अपराध है फिर ये जांच कैसे हुई, क्यों करवाई तुमने. देवकी बोली मैं इस पक्ष में नहीं थी कि भ्रूण जाँच करवाई जाये और इस और मेरा ध्यान भी नहीं था. सरला जी ने ही मुझे प्रेरित किया कि ये जानने में क्या हर्ज है कि आने वाला मेहमान कौन है. रही बात जाँच सुविधा और क़ानून की ये बातें आज के युग में बेमाने है. पैसा सब कुछ हो गया है. कीमत दो कुछ भी खरीद लो. क़ानून से वस्तु की कीमत दूनी और चौगुनी हो जाती है बस और कुछ नहीं.
पशोपेश में पड़ी देवकी निढाल होकर पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गयीं. मनु एक गिलास पानी ले आई. देवकी ने गिलास मुहं से लगाया , दो घूंट पानी पिया और गिलास मनु को पकड़ा दिया. फिर बोली कि मैं तो ऐसा कुछ भी नहीं चाहती थी, मेरे लिए लड़की और लड़का एक समान हैं पर सरला ने भ्रूण जाँच करा दी, लड़की के पैदा होने की जानकारी होने पर कहने लगी राकेश का प्रेम विवाह था, मायके से मनु कुछ भी तो नहीं लायी, जयेश अभी पढ़ रहा है, सोनी की पढाई और उसकी शादी भी तो करनी है. भाईसाहब सेवा निवृत्त हो चुकें हैं , पैसा मकान और बीमारी में लग गया है. राकेश के वेतन से गुजारा मुश्किल से चलता है, ऐसा क्यों नहीं करती कि मनु का गर्भपात करवा दो. सरला की बात सुन के तो पहले मैं अवाक रह गयी. गहराई से उसकी बात को समझने पर उसकी बात किसी हद तक मुझे ठीक लगी . घर का खर्चा बड़ी मुश्किल से चलता है. जयेश और सोनी भी टयूशन पढ़ा के काम चलाते हैं. मैं सोच रही हूँ कि सरला ठीक ही कह रही है. मनु का गर्भपात करना ज्यादा ठीक रहेगा. कल ही इस काम को निबटाना है. इतना सुनते ही सब स्तब्ध रह गए, कमरे में गहरा सन्नाटा छा गया. मनु कि मानसिक स्थिति कैसी हुई ये केवल एक माँ ही जान सकती है. इसके बखान को शब्द भी काम पड़ेंगे. मनु तुरंत वापस अपने कमरे में जा कर बिस्तर पर औंधे मुंह लेट गयी चिंतन, परिणाम , न जाने क्या क्या विचार मनु के मस्तिष्क में कोंधने लगे आँखों से अश्रु धारा रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी.
वासुदेव जो ज्यादातर देवकी के सामने खामोश रहते थे आज आक्रोश में आगये, बोले देवकी क्या तुम जानती नहीं हो कि बच्चे के लिए लोग तरसते हैं. कहाँ कहाँ दुआ मांगते हैं, ईलाज करवाते हैं. कोई जरूरी नहीं कि इसके बाद लड़का ही पैदा हो, फिर क्या करोगी, आखिर कब तक. गर्भपात के दुष्परिणाम भी होते हैं, कोई खराबी हुई तो कभी बच्चा पैदा नहीं होगा, इस दुःख के साथ मनु को आजीवन बाँझ होने का ताना सुनना पड़ेगा. समाज में हमेशा उसे हेय द्रष्टि से देखा जायेगा. इतना बड़ा अपराध, और स्त्री होते हुए भी एक स्त्री पर, जो तुम्हारी बहू भी है के प्रति घोर अन्याय करने जा रही हो. ये भी तो सोचो स्त्री पुरुष अनुपात प्रतिदिन घट रहा है, ऐसा ही लोग करते रहेंगे तो एक दिन लड़कों के लिए लड़कियां कम पड़ जाएँगी. परिणाम स्वरुप अपहरण, बलात्कार जैसे कई घिनोने मामले बढ़ेंगे. सामाजिक संतुलन बिगड़ेगा वो अलग से. यही सोच रही तो बिरादरी में जयेश के लिए लड़की कैसे मिलेगी. मनु और राकेश कि जिंदगी से खेलने का अधिकार तुम्हें किसने दिया. उनके सपनों की लाशों पर हमारा ये ख्वाबी महल कैसे टिकेगा. लड़का लड़की पैदा होना, भगवान् के हाथ है. भगवान् किसकी सेवा करने का मौका हमें दे रहा है, हम उसे क्यों अस्वीकार करे. ये घोर पाप है. और फिर क्या राकेश और मनु से भी इसके बारे पूछा. वे मानेगे तुम्हारी बात. मैं तुम से कदापि सहमत नहीं हूँ.
देवकी बोली मनु की क्या बात अगर उसे इस घर में रहना है तो जो मैं चाहूंगी उसे करना होगा , बहुत करली उसने मनमानी. रही बात राकेश की तो आज तक ऐसा नहीं हुआ कि मैंने कुछ कहा हो और उसने न माना हो. अगर राकेश इनकार करेगा तो मैं अपने दूध के कर्ज का हिसाब कर लूंगी . मैंने जो निर्णय लिया है वह अंतिम निर्णय है और किसी भी दशा में इसको बदलूंगी नहीं.
सोनी जो अभी तक अपनी माँ के पीछे खड़ी थी मनु के कमरे में चली गयी. विस्तार से माँ के निर्णय को बताते हुए बोली भाभी अब क्या करोगी . भैया भी माँ की बात कैसे टालेंगे. मैं आपकी पीड़ा को समझती हूँ. मैं आपके साथ हूँ. आप कैसे भी हो माँ की बात नहीं मानना. पर ये कैसे होगा मैं नहीं जानती और आप कैसे इस समस्या का हल निकालेंगी मैं ये भी नहीं जानती. मुझे तो दुःख के साथ बहुत डर लग रहा है. आपकी ये हालत देखकर मैं सोच रही हूँ कि मैं आजन्म कुँवारी ही रहूँ. मेरी ससुराल में भी यही सब कुछ मेरे साथ हुआ तो. एक स्त्री एक स्त्री का शोषण क्यों करती है, किस लिए. ये माँ जिसने खुद एक लड़की को जन्म दिया आज खुद ही एक बच्चे की हत्या करने पर तुली है. मुझे तो स्त्री जाति और ऐसी माँ पर शर्म आ रही है. जो घोर पाप करने के निर्णय पर अडिग है. भैया से भी मुझे कोई ज्यादा उम्मीद नहीं दिखती कि वो आपका साथ दे पायें.
मनु धीरे से उठी और बिस्तर पर सीधे होकर बैठ गयी. माथे पर आंसुओं से भीगे बालों को हटाते हुए सोनी को सीने से लगाते हुए बोली सोनी घबराओ नहीं सब ठीक हो जायेगा. तुम जाओ बाबू जी भूखे होंगे. जयेश और वो भी आने वाले हैं खाना बना लो. आज मैं तुम्हारी कोई मदद नहीं कर पाऊँगी.
राकेश ने जब कमरे में प्रवेश किया तो घर का वातावरण कुछ अजीब सा लगा. माँ का चेहरा तनावपूर्ण एवं चिंता ग्रस्त दिखा तो बाबू जी किसी भारी गम में डूबे दिखे. मनु जो रोज मेरे इन्तजार में दरवाजे पर खड़ी मिलती थी और अपनी मोहक मुस्कान से मेरी सारी थकान हर लेती थी वो भी कमरे में नहीं थी. राकेश का माथा ठनका कि जरूर कोई गंभीर बात है पर क्या हुआ इसे जानने के लिए वो किचेन में चला गया. वहां देखा तो सोनी खाना बना रही थी. राकेश ने मनु के बारे में पूंछा कि मनु कहाँ है और दिखाई नहीं दे रही और तुम अपनी पढाई न करके आज खाना बना रही हो. सोनी राकेश को देख कर भैया कहकर लिपट गयी और सिसकियों के साथ सारा घटनाक्रम बता दिया. राकेश ने सब कुछ ध्यान से सुना और अपने कमरे में जहाँ मनु थी चला गया.
मनु ने भी राकेश से अपने प्यार , प्यार की निशानी और बिखरते सपनो के बारे बताते हुए आँखों ही आँखों में अपने प्रश्न का उत्तर जानना चाहा. राकेश ने मनु को आश्वस्त किया कि घबराओ नहीं मैं तुम्हारे साथ हूँ. सब ठीक होगा. माँ को मैं मना लूँगा. यह कहकर मनु का हाथ पकड़ कर बाहर कमरे में अपनी माँ के पास ले आया. राकेश ने अपनी माँ से पूंछा कि आप ये क्या करने जा रही हैं. अपने बच्चों कि खुशियों की जरा भी परवाह नहीं है आपको. अपने ही हाथों से खुशियों का गला घोटने को तत्पर हैं. आप कभी ऐसी तो न थीं. फिर आप ऐसा करना तो क्या ऐसा सोचा भी कैसे जबकि आपके आदर्श और संस्कारों की चर्चा दूर दूर तक होती है. मैं आपके निर्णय से असहमत हूँ. यदि आप निर्णय नहीं बदलेंगी तो मैं मनु के साथ इस घर से सदा के लिए चला जाऊंगा.
इतना सुनते ही देवकी जो अबतक खामोश बैठी थी तनकर खड़ी हो गयी और बोली मैं जानती थी की तू भी अपनी बीबी का ही पक्ष लेगा. है न दूसरे कुल की वो क्या जाने की परिवार कैसे चलाया जाता है. वो क्या जानेगी हमारा दुःख दर्द और क्यों जानेगी. उसने तो केवल तुमको ही जाना है. खूब अदा कर रहा है दूध का कर्ज. न तुझे भाई की चिंता न बहन की. माँ बाप तो होते ही हैं अपनी औलादों के बोझ को ढोने के लिए. वक्त आता है तो यही औलादें बूढ़े माँ बाप को छोड़ देती है तनहा सफ़र करने के लिए. तू कोई नया तो है नहीं. जाना है तो चला जा छोड़ दे हमें अकेला. जैसे जीना मरना हमारे भाग्य में है हम जी लेंगे. खून सफ़ेद हो गया है तेरा. तेरे ही भलाई के लिए ही तो ये निर्णय लिया है. लड़की की पढाई लिखाई. समाज की ऊँच नीच, शादी का दान दहेज़ और उसके बाद भी ससुराल वालों के रोज रोज के नाज नखरे. मैं तो कहतीं हूँ की इस बच्चे को गिरा दे. आजकल इतनी सुविधा है उसका लाभ ले. जब बालक पेट में आये तो जन्म देना. अभी तो तुम्हारी उम्र है. बेवकूफी न कर. राकेश को लगा माँ कुछ ठीक ही तो कह रही है. इनसे मेरी कोई दुश्मनी तो है नहीं और फिर इस परिवार के प्रति मेरा कुछ दायित्व भी तो बनता है. लोग क्या कहेंगे अगर मैं इन सबको छोड़ कर चला गया. जयेश की तो कोई बात नहीं पर सोनी के बारे में तो सोचना है. मेरे माँ बाप ने मुझे पाला पोसा. बड़ा किया. पढाया लिखाया. इनकी भी तो कुछ अपेक्षाएं मुझ से होंगी. जरा सी बात पर मैं घर छोड़ दूं यह ठीक न होगा. राकेश ने पास खड़ी मनु की ओर देखा और माँ के फैसले को ही मानने हेतु कहा.
मनु को, राकेश, अपने प्यार, जिसके लिए वो सब कुछ छोड़कर चली आई थी ऐसी आशा कदापि नहीं थी कि वो एक जघन्य और अनैतिक कार्य में अपने परिवार का साथ देगा. मनु जो अब तक शोक, दया और करुणा की मूरत बनी थी राकेश की बात सुनकर बिफर पड़ी और देवकी से बोली मेरे परिवार, कुल के संस्कार की दुहाई देती हैं आप. आप इतने प्रतिष्टित एवं संस्कारित कुल की और देवकी नाम होने के बाद भी एक जीव हत्या को तत्पर है अपने निजी स्वार्थ के लिए. आपने भी तो सोनी को जन्म दिया है. क्यों नहीं गला घोंटा इसका तब . जो ज्ञान और दर्शन आज बघार रही हैं कहाँ चला गया था. युगों युगों से सबसे ज्यादा नारी ने नारी का शोषण किया है. उसका रूप कोई भी रहा हो. आज भी कर रही है. नारी क्यों समझौता करती है अपने शोषण हेतु. क्यों भ्रूण हत्या करवाती है. क्यों अपनी गोद से छिनने देती है बच्चे को बाप के हाथ हत्या करवाने को. नारी अबला है, नारी शशक्तिकरण नारे लगा , संघटन बनाने से नारी कैसे शशक्त होगी जब आप जैसी नारियें इस धरती पर होंगी. पर मैं उन नारियों में से नहीं हूँ, जो आप जैसी नारियों के ढकोंसलों में आयें.मिटने दें अपनी हस्ती को. राकेश जिसने मेरे साथ जीने मरने की कसमें खायीं थी, कई जन्मों का वादा किया था साथ रहने का, अगर आज वो मेरे साथ नहीं आता है तो कोई बात नहीं मैं जा रही हूँ और जी लूंगी अपनी जिंदगी इससे बेहतर हो या न हो पर मैं उसे जन्म दूँगी .
Comment
मैं उसे जन्म दूँगी, एक ऐसी नारी की कथा, व्यथा है जो उसकी मजबूत मानसिकता का परिचय देते हुए निर्णय लेने की क्षमता को दिखाता है. भ्रूण हत्या के रोकने के कई उपाय हैं. इस कहानी में एक पात्र सरला का है, जिसको पहचाना जाना आवश्यक था. गुरुदेव ने उस चरित्र को और बढ़ाने हेतु निर्देश दिया था. मैं लिखते समय सरला के स्वयं की ६ पुत्री दिखाना चाहता था, खैर. हर युग में मन्थरा हुई हैं. सरला भी वही है. अगर ये कान न भरती तो मनु तो बेहतर स्वास्थ व्यवस्था के लिए अपनी सास के साथ गयी थी.
aadarniya sima ji, sadar , aapne manu charitr ko samarthan diya, haardik abhar.
snehi aashish ji, aapne kimti samay dekar vicharon ko samarthan diya. dhanyvaad.
आदरणीय गुरुदेव सौरभ जी. सादर अभिवादन.
आदरणीय शुभ्रांशु जी, सादर अभिवादन.
//रचना की प्रष्ट भूमि भी लम्बी है. कई जगह भटका. किस पात्र से क्या कहाया जाय. फिर मैं लिखता गया बात पहुंचा दी जाय बस. //
आदरणीय प्रदीप जी, आपकी इस संलग्नता और अभिभूतकारी रचना-कर्म को मेरा सादर नमन. प्रारम्भिक दौर में ऐसा सही भी है.
लेकिन क्या नहीं कहना है यह किसी भी संप्रेषण की सान्द्रता और उसके प्रति स्वीकार्य भाव को बढ़ा देता है. देखिये न, भौतिक रूप से किसी मूरत और पाषाण के टुकड़े में कोई अन्तर नहीं होता. लेकिन ’जो नहीं चाहिये’ के छँटते ही पाषाण का टुकड़ा मूरत में परिणत हो जाता है जिसके प्रति हमारी तमाम भावनाएँ जाग्रत हो जाती हैं.
संभवतः मैं अपनी बात साझा कर पाया.
सादर
राकेश जिसने मेरे साथ जीने मरने की कसमें खायीं थी, कई जन्मों का वादा किया था साथ रहने का, अगर आज वो मेरे साथ नहीं आता है तो कोई बात नहीं मैं जा रही हूँ और जी लूंगी अपनी जिंदगी इससे बेहतर हो या न हो पर मैं उसे जन्म दूँगी .
कहानी बहुत अच्छी है. मनु का संकल्प मन को भाता है......लेकिन कहानी निर्माण के साथ साथ विघटन का भी रुप दिखाती है. बेटी के जन्म के लिये परिवार का टूटना नकारात्मक भाव दिखाता है. गलत परंपराओं को बदलना ज्यादा जरुरी है...
सरला चाची का पात्र और मुखर होता तो मजा आता......
आदरणीया सिंह साहब जी, सादर अभिवादन.
आदरणीया सौरभ जी, सादर अभिवादन.
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