मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी
मैं कोई धागा तो नहीं, जो सुई के पीछे आऊँगी |
मैं हूँ मस्त पवन कि खुशबू, जहां चाहे बिखर जाऊँगी
मैं कोई काजल तो नहीं, जो पलकों में सिमट जाऊँगी |
मैं हूँ उन्मुक्त सशक्त पतंग, उच्च गगन लहराऊँगी
मैं कोई मैना तो नहीं, जो पिंजरे बीच कैद हो जाऊँगी |
मैं हूँ पाषाण हिय कि नारी, अपनी क्षमता दिखलाऊंगी
मैं कोई शुष्क लकड़ी तो नहीं, जो आरी से कट जाऊँगी |
मैं हूँ आज की शिक्षित नारी, कभी न शीश झुकाउँगी
नारी अबला होती है यह, प्रचलित कथन मिटाऊँगी |
Comment
महिमा जी बहुत बहुत आभार आपका |
मैं हूँ स्वछन्द ,नीर की बदरी, जहां चाहे बरस जाऊँगी
इस शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |
aabhar vandana ji bahut bahut shukria.
बहुत बहुत आभार छोटू जी
बहुत बहुत आभार अविनाश बागडे जी
मैं हूँ मस्त पवन कि खुशबू, जहां चाहे बिखर जाऊँगी
मैं कोई काजल तो नहीं, जो पलकों में सिमट जाऊँगी |
sashakt bhav...
बहुत बहुत आभार गणेश बागी जी |
आदरणीया राजेश कुमारी जी, बहुत ही ससक्त अभिव्यक्ति है, आज की नारी सब कुछ कर सकती है और करती भी है, इस शानदार अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें |
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