भक्षक (लघु कथा )
साहब मेरी बेटी कहाँ है ?हरिया ने हाथ जोड़कर स्थानीय थाने में बैठे दरोगा से गिड़ गिडाते हुए पूछा |अब होश आया तुझे दो दिन हो गये तेरी बेटी को नहर से निकाला था,हाँ आत्महत्या का प्रयास करने से पहले तेरे पास भी तो आई थी अपनी ससुराल वालो के अत्याचार का दुखड़ा रोने करी थी क्या तूने उसकी मदद ,अब आया बेटी वाला |आत्म हत्या भी जुर्म है केस चलेगा अभी लाकअप में बंद है कल आना वकील के साथ लिखत पढ़त करके छोड़ देंगे|पर साहब इन कोठरियों में तो दिखाई नहीं !!!उसकी बात पूरी होने से पहले ही दरोगा ने पास खड़े सिपाही से कहा इसे बाहर तो छोड़ के आ | फिर दूसरे सिपाही को बुलाकर धीरे से बोला जा पीछे के दरवाजे से लाकर उसे लाकअप में डाल दे |येस सर कह कर फिर ठिठकते हुए धीरे से सिपाही बोला सर अपने घर की चाबी तो दे दीजिये पहले !!!
Comment
वीनस जी हार्दिक आभार
अशोक कुमार जी आप सही कह रहे हैं जब रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कहाँ जाएँ
राजेश कुमारी जी
भक्षक समाज का असली चेहरा दिखाती हुई लघु कथा अपने उद्देश्य को पूरा कर रही है
बधाई स्वीकारें
जब एक गुंडा सांसद बन देश की सर्वोच्च संस्था की मर्यादा धूमिल करता है और कहता है हम तो चुन कर आये हैं. तो फिर किसी पुलिस वाले को कहने का अर्थ ही क्या? चाहे लाकप हो, ट्रेनिग सेंटर हो या सूनी राहें. पुलिस का स्तर यही रहेगा.
महिमा श्री जी बिलकुल सही कहा इनकी तो जितनी कब्र खोदो उतनी ही अधिक दुर्गन्ध आएगी
आशीष यादव जी बेहतरीन कटाक्ष एक शब्द में ...वाह ...यही हो रहा है
दूध की रखवाली बिल्ली कर रही है।
सामयिक संवेदनात्मक व्यंग।
बधाई।
शलेन्द्र कुमार जी यह एक कटु सत्य है कुर्सी के घमंड में लोगों की विकृत मानसिकता का द्रश्य है
संवेदना से परिचय कराती लघु कथा हार्दिक बधाई स्वीकार करें मैम
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