For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

खोल दिए पट श्यामल अभ्रपारों ने 

मुक्त का दिए वारि बंधन 

नहा गए उन्नत शिखर 

धुल गई बदन की मलिनता 

दमक उठे हिमगिरी 

झूम उठी घाटियाँ 

थिरक  उठी वादियाँ 

लहरा गई नीली चुनरिया 

अम्बर की छाती पर| 

ठहरी -ठहरी सी तरंगिणी

बह चली द्रुत गति से 

बल खाती हुई 

गुनगुनाती हुई 

पत्थरों के संग 

अठखेलियाँ करती हुई|                                                                                                     

मैं चुपके से अपनी अंजुरी में 

रंगों को समेटे 

बाहर आया

पड़ गई  मयूर की प्यासी नजर,

अपनी प्रेयसी को रिझाने, 

हेतु  अपने पंखों 

का श्रृंगार करने के लिए, 

मुझसे कुछ रंग मांग कर ले गया |

 उसका रोम रोम झूम उठा

अपने नृत्य से

सारी प्रकृति को  मन मोहित कर दिया

 पल्लवों ने

झूम झूम कर करतल ध्वनी की|

शाखाओं ने

एक दूजे को बाहों में लेकर

 बधाईयाँ दी 

ना जाने कहाँ से 

एक छोटी सी चंचल 

तितली मेरे रंगों में 

अपने नन्हें नन्हें पंख 

डुबोकर इतराती इठलाती 

एक पुष्प की गोदी में बैठ कर बोली 

रंगों का राजा आया है 

तुम भी अपना सोलह श्रृंगार करलो,

सारी प्रकृति में बात फ़ैल गई 

मैंने अपना बचा रंग सारी 

प्रकृति में वितरित कर दिया 

और फिर विस्मित  आँखों से 

धरा के उस आलौकिक 

रूप को देखता ही रह गया,  

और उस महान चित्रकार को 

जिसकी कला में मैंने रंग भरा 

नमन करते हुए

 चल दिया अपनी राह

फिर से रंग समेटने 

और इंतज़ार करने 

कि कब कोई मेघ श्रंखला  

अपने बंधन खोलेगी 

और हिमगिरी 

की घाटियाँ मेघ मल्हार 

गायेंगी और प्रकृति 

नृत्य करेगी |

और मैं मुस्कुराता हुआ

फिर किसी दिशा में

निकल आऊंगा

अपने रंग बिखेरने 

चुपके से|

*****

Views: 689

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 6:55pm

Bhavesh Rajpal ji bahut khushi hui aapki pratikriya padh kar humara dil bhi baag baag ho gaya.

Comment by Bhawesh Rajpal on May 6, 2012 at 3:06pm
दिल बाग-बाग़  हो गया !  मन प्रकृति की सुन्दरता में खो गया ! मैं भी आपका आभारी हो गया !
रचना के लिए बहुत बहुत बधाई  ! 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 6, 2012 at 8:58am

सुरेंदर कुमार शुक्ला जी रचना आपको पसंद आई इस सराहना हेतु बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद |

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 12:08am

एक छोटी सी चंचल 

तितली मेरे रंगों में 

अपने नन्हें नन्हें पंख 

डुबोकर इतराती इठलाती 

एक पुष्प की गोदी में बैठ कर बोली 

रंगों का राजा आया है 

तुम भी अपना सोलह श्रृंगार करलो,

राजेश कुमारी जी ..बहुत सुन्दर ..रमणीय.. मन प्रकृति में और उस महान आत्मा चित्रकार  में खो गया ..प्यारी रचना ... शुभ कामनाएं ..जय श्री राधे -भ्रमर ५ 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2012 at 8:12pm

अरुणकुमार पाण्डेय अभिनव जी आपको कविता की सराहना हेतु लख लख आभार |

Comment by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 7:59pm

कि कब कोई मेघ श्रंखला  

अपने बंधन खोलेगी 

और हिमगिरी 

की घाटियाँ मेघ मल्हार 

गायेंगी और प्रकृति 

नृत्य करेगी |

वाह बहुत खूब रचना में शब्द चित्र सी शक्ति है जो पाठक को उस परिवेश में ले जाती है !! इस इन्द्रधनुषी रचना पर हार्दिक बधाई !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2012 at 1:21pm

प्रदीप कुमार कुशवाह जी आपकी सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर मेरी कलम को बल मिला है बहुत - बहुत हार्दिक आभार |

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 1:09pm

पड़ गई  मयूर की प्यासी नजर,

अपनी प्रेयसी को रिझाने, 

हेतु  अपने पंखों 

का श्रृंगार करने के लिए, 

मुझसे कुछ रंग मांग कर ले गया |

बहुत सुन्दर ,भाव दिल को छू गए , पंक्तिया कविता की जान है.  बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2012 at 12:14pm

दुष्यंत सेवक जी बहुत अच्छा लगा आपकी सुन्दर प्रतिक्रिया पाकर हार्दिक आभार|


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 5, 2012 at 12:12pm

बहुत बहुत हार्दिक आभार योगराज जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
19 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Sunday
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपने बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है। यह लघुकथा एक कुशल रूपक है, जहाँ…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service