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आदरणीय राजेश जी
सादर,
आज मैं उसका अर्थ समझ चुका हूँ
तुम्हारी कसम आज मैंने
पत्थरों वाली लकीर पर चलकर
अपना लक्ष्य प्राप्त किया है
मंजिल मेरी मुठ्ठी में है
चाहता हूँ खोल कर दिखाऊं
पर माँ तुम्हें कहाँ से लाऊं ???
मदर्स डे पर आपने बहुत ही मार्मिक रचना लिखी है दिल को छू गयी. बधाई.
सुरेन्द्र कुमार शुक्ला जी बहुत- बहुत हार्दिक आभार आप सही कहते हैं कोई माँ अपने बच्चे को गलत सीख दे ही नहीं सकती
कि किसी एक लकीर पर चलकर
हार्दिक आभार संजय कुमार पटेल जी मात्र दिवस की शुभकामनाएं
हार्दिक आभार अजय बोहत मात्र दिवस की शुभकामनाएं
माँ तुम्हें कहाँ से लाऊं ???
in bhaavon ke liye aapko hardik badhai .............behad bhavnatmak
Bahut hi marmik rachana Rajesh ji, mera pranaam aapko.
गणेश बागी जी हार्दिक आभार मेरी भावना की कद्र करने के लिए
हार्दिक आभार सौरभ जी मेरी रचना ने आपके दिल को छुआ
बहुत- बहुत आभार आशीष जी ये सच है माँ हमेशा दिल में रहती है
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