For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 मैंने अपने अंदर बना डाले हैं

अजीब से दायरे 

अनेक बंधन 

अनेक विचार 

मैंने पाल रखे हैं

अजीब सी मान्यताएं 

अनेक नियम 

अनेक प्रथाएं

इनसे निकल नहीं  पाती

घुमती रहती हूँ उसी में

बाहर जा नहीं पाती

मैंने कही भी नहीं

खुले  रखे हैं दरवाजे

डाल रखे हैं दरवाजो पे

बड़े बड़े ताले

खो बैठी हूँ उनकी चाभियाँ

नहीं ढूंढने जाती हूँ उन्हें

सोच रखे हैं कई बहाने

बाहरी हवाएं नहीं आती

मौसम भी नहीं बदलते

सूरज की किरणें  भी

लौट जाती है टकराकर

दो पल खुश हो जाती हूँ

अपने इंतजामात पर

पर अगले पल ही छा जाता है

घनघोर अँधेरा

मुश्किल होता है

ये जानना

दिन है या रात हो गयी है

सच है या

है कोई मायाजाल 

Views: 777

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 3, 2012 at 2:58pm

अच्छी रचना है  | यह  तो मानव  स्वाभाव  है,

मानव कुच्छ धारणाए मन में रखता है, उनसे वह 

बहार नहीं निकल पाता, वर्ना वह इन्सान से महान,

महान से देव तुल्य बन जावे | इस आपने अपने भावो 

से यथार्थ चित्रित किया है |  सुंदर चित्र की लिए बधाई |   

Comment by MAHIMA SHREE on May 3, 2012 at 2:12pm
वीनस जी , नमस्कार , स्वागत है आपका ..
सच कहा आपने हम सभी अपने अपने मायाजाल में फंसे पड़े है ... चाहे वो छोटा हो या बड़ा ..
आपका हार्दिक धन्यवाद , आभारी हूँ आपने पढ़ा और सराहा /
Comment by MAHIMA SHREE on May 3, 2012 at 2:09pm
आदरणीय प्रदीप सर , सादर नमस्कार
सर आपका आशीर्वाद मिल रहा है तो ये प्रभु कृपा ही है ....
सबका स्नेह आशीष से मायाजाल टूट जायेगा एक दिन ..
आपका ह्रदय से धन्यवाद
Comment by वीनस केसरी on May 2, 2012 at 11:21pm

सुन्दर
अपनी सी लगती कविता
बधाई स्वीकारें ...


हर किसी के पास होता है
अपना एक माया जाल
हर कोई बनाता है
अपना एक संसार 
जिसकी जितनी सोच होती है
उसका संसार भी उतना ही बड़ा होता है
मेरा  संसार मुझे छोटा लगता है
बहुत छोटा
काश मैं कुछ नया सोच सकूं ...
जो बड़ा हो ...

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 2, 2012 at 2:24pm

स्नेही महिमा , सादर 

मन  की किवड़िया खोल, प्रभु  तेरे  द्वारे  खड़े . 
रूक जाना नहीं हिम्मत को हार के आयेंगे फिर दिन बहार के.
काश ये मायाजाल ही हो . 
बहुत  सुन्दर रचना. बधाई. 
Comment by Bhawesh Rajpal on May 2, 2012 at 4:46am

बहुत- बहुत  धन्यवाद  ! अब मेरी टिप्पणिया हिंदी में ही होंगी  !

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2012 at 10:08pm

भावेश  जी नमस्कार , आपका स्वागत है , आपने सराहा , उत्साहवर्धन   किया , आपका ह्रदय से धन्यवाद

(जहा पे सारे obo के नियम लिखे हुए है ठीक उसके निचे आपको हिंदी में लिखने का लिंक दिया हुआ लिखा हुआ है देवनागरी (हिंदी ) टाइप करने हेतु यंहा क्लिक करे उसे क्लिक करते ही नया पेज विंडो ओपन होगा जहा आप हिंदी में लिख कर फिर कापी कर जहा पेस्ट करना है कर सकते है  )

Comment by MAHIMA SHREE on May 1, 2012 at 10:02pm

आशीष जी नमस्कार , आपका ह्रदय से धन्यवाद....

Comment by Bhawesh Rajpal on May 1, 2012 at 4:04pm

Respected Mahima shree Ji , Beautifully expressed boundations created by self.

Heartiest Greetings and Regards.

I am a new member and still trying to understand how to convert my comments in Hindi.

Can any one help me in this regard.

Comment by आशीष यादव on April 30, 2012 at 5:52pm

सुन्दर रचना। भावनाओं की सुन्दर अभिव्यक्ति।
बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ **** खुश हुआ अंबर धरा से प्यार करके साथ करवाचौथ का त्यौहार करके।१। * चूड़ियाँ…See More
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी, प्रस्तुत कविता बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण हुई है। एक वृद्ध की…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर left a comment for लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार की ओर से आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं।"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद। बहुत-बहुत आभार। सादर"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज भंडारी सर वाह वाह क्या ही खूब गजल कही है इस बेहतरीन ग़ज़ल पर शेर दर शेर  दाद और…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
" आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी…"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post बाल बच्चो को आँगन मिले सोचकर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, आपकी प्रस्तुति में केवल तथ्य ही नहीं हैं, बल्कि कहन को लेकर प्रयोग भी हुए…"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .इसरार
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपने क्या ही खूब दोहे लिखे हैं। आपने दोहों में प्रेम, भावनाओं और मानवीय…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post "मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए शेर-दर-शेर दाद ओ मुबारकबाद क़ुबूल करें ..... पसरने न दो…"
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेन्द्र जी समाज की वर्तमान स्थिति पर गहरा कटाक्ष करती बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने है, आज समाज…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service