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मानसरोवर से मैं  निकली गंगोत्री  मेरा धाम 
पाप धोएं पापी मुझमे फिर भी मैं निष्काम
प्रयास भगीरथ करके लाये  धरा   निज  धाम 
साठ सहस्त्र पुरखे तारे  कहाँ  मोहे   विश्राम 
चली नगर जब  भर   डगर  बंजर उपजाऊ   हो  गए
छा गयी हरियाली जग में प्यासे मन   हर्षित   हो गये
माँ कहके जन पुकारे मुझको  आरती करे सुबह शाम 
कैसे दुश्मन इस धरा के मैला छोड़  रहे  बेदाम 
आये न लज्जा करें न सज्जा मति  इनकी  मारी   है 
काहे   करते  मैला मुझको  ऐसी भी   क्या  लाचारी  है 
 करोगे गर अब तुम अब भी मैला तेरे उपवन खाऊँगी
जहरीली तो मैं हो चुकी अब न बचूं  मर जाउंगी 
समय अभी  है चेत  जा  मानव काहे  अपमान करे 
माँ हूँ तेरी लाख सताए तू काहे का अभिमान करे 
राजा  बैठा  करे न रक्षा संतन की  अब बारी है 
पूत कपूत भये अब तो लम्पट औ   व्यभिचारी हैं  
आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा 
माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा 

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 5:01pm

आदरणीय  राजपाल  जी, सादर

समय, समर्थन हेतु आभार 
जय गंगा मैया , धन्यवाद .
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 4:59pm

आदरणीय  अजय   बोहत  जी, सादर

जय गंगा मैया , धन्यवाद .
Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 13, 2012 at 4:59pm

आये न लज्जा करें न सज्जा मति  इनकी  मारी   है 

काहे   करते  मैला मुझको  ऐसी भी   क्या  लाचारी  है 
 करोगे गर अब तुम अब भी मैला तेरे उपवन खाऊँगी
जहरीली तो मैं हो चुकी अब न बचूं  मर जाउंगी 
आदरणीय कुशवाहा जी आप की इस प्यारी रचना के लिए बहुत बहुत बधाई ..सुन्दर शब्दों में चेतावनी ...काश लोग इस तरफ रुख करें जागरूक हों ..
आभार 
भ्रमर ५  
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 4:58pm

प्रिय महिमा, सस्नेह 

जय गंगा मैया , धन्यवाद .
Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2012 at 4:56pm

प्रिय अजय जी, सस्नेह 

जय गंगा  मैया. लक्ष्य से भटकना नहीं, नाम रोशन करना है.dhanyvad 

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 13, 2012 at 12:02pm

प्रदीप कुमार कुशवाह जी मात्र दिवस के अवसर पर गंगा मैय्या के ऊपर लिखी रचना से ये पावन दिवस सार्थक हो गया बहुत भाव पूर्ण रचना है बधाई स्वीकारिये 

Comment by Bhawesh Rajpal on May 13, 2012 at 8:49am
युगों -युगों से  गंगा माँ  हम सबों को जीवन  दे रही है , और हम उसके इस उपकार का बदला  उसे मैला कर चूका रहे हैं !  कैसी विडम्बना है ,
जिसे हम पूजते हैं , उसी को प्रदूषित करते हैं !   आपकी ये सशक्त चेतावनी सभी तक पहुंचनी चाहिए !
बहुत-बहुत बधाई आदरणीय   कुशवाहा जी  !  जय गंगा माँ !
Comment by AjAy Kumar Bohat on May 12, 2012 at 8:33pm

आओ सब मिल साफ़ करो मांग रही हूँ भिक्षा 

माँ की ये हालत कर दी क्या मिली थी शिक्षा 
bahut hi khoob likha hai sir
Comment by MAHIMA SHREE on May 12, 2012 at 6:40pm
आये न लज्जा करें न सज्जा मति  इनकी  मारी   है 
काहे   करते  मैला मुझको  ऐसी भी   क्या  लाचारी  है 
 करोगे गर अब तुम अब भी मैला तेरे उपवन खाऊँगी
जहरीली तो मैं हो चुकी अब न बचूं  मर जाउंगी 

बहुत ही सटीक और मार्मिक दशा चित्रण गंगा मैया की आदरणीय प्रदीप सर ..आपको ह्रदय से बधाई

Comment by Ajay Kumar Dubey on May 12, 2012 at 5:23pm

गंगा मईया की दुर्दशा का बहुत ही मार्मिक चित्रण

जय गंगा मईया .

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