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दोषारोपण
 
नन्हा
अबोध बाल मन,
साफ़ आइना
जिसमे बनते बिगड़ते हैं
नित नए बिम्ब
दुनिया के हर स्वरुप के.....
ज्ञानेन्द्रियों से सोख
निर्भेद हर ज्ञान अज्ञान,
बढ़ाता है
नन्हे कदम
नित नए प्रयोगों के लिए...
और
नन्हे हाथ
समेट लेने को पूरा नव्य संसार...
आखिर
क्यों हो जाता है
कभी-कभी अपाहिज
आत्म-विश्वास हीनता से...?
और
हो जाता है मजबूर
ढूँढने को बैसाखियाँ
शुरुवाती क़दमों से...?
फिर
डांट, आलोचना,
उपेक्षा, तुलना
के वार,
करते जाते हैं उसे और घायल
हर बार,
....................और वो
जिन्हें
संवारना था
निखारना था
एक व्यक्तित्व,
करते रह जाते हैं
दोषारोपण
परिस्थितियों पर !!!!!!!!!!

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Comment

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प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 16, 2012 at 1:00pm

बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति डॉ प्राची सिंह जी, साधुवाद स्वीकारें .   


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on May 16, 2012 at 11:17am
.और वो
जिन्हें
संवारना था
निखारना था
एक व्यक्तित्व,
करते रह जाते हैं
दोषारोपण
परिस्थितियों पर !!!!!!!!!!जी हाँ सही कहा हम एक दूसरे पर दोषारोपण करते रह जाते हैं और परिस्थितियाँ दूर खड़ी हमे मुंह चिढाती हैं अपने अन्दर तो हम झांकना ही नहीं चाहते ...बहुत सुन्दर रचना 
Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 11:15am

bahut bahut badhaai 

Comment by Rekha Joshi on May 16, 2012 at 11:15am

नन्हा अबोध  बाल मनके बारे में  ,प्राची जी बहुत ही बढ़िया लिखा है आपने ,बधाई 

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