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मै वृक्ष हो गया.

पौधा था छोटा था
लगता था अब गया तब गया
कभी बारिश की बुँदे
सुहानी लगती थी
कभी लगता डूब गया डूब गया,
हिम्मत करके टहनियां बढ़ाई,
नयी कोपलें बिखराई,
अब गगनचुम्बी वृक्षों को
छूने लगी टहनियां,
लगा मै भी खडा हो गया खडा हो गया,
मगर पुष्पों के खिलने तक
अहसास नहीं हो पाया बड़ा होने का,
फलों से लदते ही लगा
मै बड़ा हो गया बड़ा हो गया,
मै भूल गया
वो छुटपन का अहसास
ना डर रहा कुछ खोने का
ना उत्साह और कुछ पाने का,
दे रहा हूँ आश्रय आने जाने वालों को
और कुछ मीठे फल खाने को,
क्योंकि मै वृक्ष हो गया वृक्ष हो गया.

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Comment by Ashok Kumar Raktale on May 25, 2012 at 1:29pm

आदरणीय बागी जी

                                         सादर, इंसान  वृक्षों या प्रकृति से कुछ सीख सके यही उद्देश्य लेकर लिखी गयी रचना आपको पसंद आयी. आभार.
                                                   

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on May 21, 2012 at 7:35pm

आहा !! वृक्ष हो या मनुष्य दोनों का जीवन एक ही तरह का है ना ...बहुत ही खुबसूरत रचना आदरणीय अशोक कुमार जी , बहुत बहुत बधाई इस रचना पर |

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2012 at 6:44pm

सरिता जी
       सादर नमस्कार, प्रकृति हमें सदैव शिक्षा देती है. हम पर ही निर्भर करता है हम कितना ग्रहण कर पाते हैं. आपकी सार्थक प्रतिक्रया के लिए धन्यवाद.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 21, 2012 at 6:41pm

आदरणीय प्रभाकर जी
               सादर नमस्कार, आपको मेरी रचना पसंद आयी आपकी प्रशंसा मुझे आगे और भी अच्छा लिखने के लिए प्ररित करेगी. धन्यवाद.

Comment by Sarita Sinha on May 21, 2012 at 2:59pm

मान्यवर अशोक जी, नमस्कार, 

वृक्ष को बिम्ब मान कर मानव मात्र को परमार्थ का उपदेश देती हुई एक सुन्दर रचना..
बधाई...

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 21, 2012 at 12:23pm

आदरणीय अशोक कुमार रत्कले जी, वृक्ष को बिम्ब बना कर बहुत गहरी बात कह गए आप. पूरे मानव जीवन को इतने थोड़े शब्दों में बयान कर दिया - वाह वाह वाह. इस सारगर्भित कथ्य पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकार करें.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 6:43pm

आदरणीय सौरभ जी
             सादर नमस्कार, बिलकुल सही कहा आपने, यही मुलभूत गुण हम मानव में देखना चाहते हैं. आभार.

Comment by Ashok Kumar Raktale on May 20, 2012 at 6:41pm

 रेखा जी,
              सादर नमस्कार, आपको रचना अच्छी लगी मेरा लिखना सार्थक हुआ. धन्यवाद.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 20, 2012 at 3:46pm

वृक्ष को सामने रख कर मूलभूत गुणों का अच्छा बखान किया आपने, अशोक भाईजी.

Comment by Rekha Joshi on May 20, 2012 at 10:46am

दे रहा हूँ आश्रय आने जाने वालों को
और कुछ मीठे फल खाने को,
क्योंकि मै वृक्ष हो गया वृक्ष हो गया
.

bahut sundr rachna ashok ji ,bahut bahut badhai

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