For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

व्यंग्य - पानी रे पानी...

निश्चित ही पानी अनमोल है। यह बात पहले मुझे कागजों में ही अच्छी लगती थी, अब समझ भी आ रहा है। गर्मी में पानी, सोने से भी महंगा हो गया है, बाजार में दुकान पर जाने से ‘सोना’ मिल भी जाएगा, मगर ‘पानी’ कहीं गुम हो गया है। मेरे लिए तो फिलहाल सोने से भी ज्यादा कीमत, पानी की है, क्योंकि पानी को ढूंढने निकलता हूं तो दिन खप जाता है और वह गाना याद आता है...पानी रे पानी...तेरा रंग कैसा...। पानी के बिना वैसे तो जिंदगी ही अधूरी है और ऐसा लग भी रहा है, क्योंकि पानी ने जिंदगी से दूरी जो बना ली है। सुबह से शाम, पानी की चिंता में ही गुजरती है, ऊपर से पेट्रोल ने उसमें छोंक डालने का काम किया है। ऐसे में हम जैसे आम आदमी करे तो क्या करे ? बड़े लोग तो ढूंढकर पानी खरीद लेते हैं, हम जैसे अनगिनत लोग क्या करें, जिन्हें ‘पानी’ ढूंढने से भी नहीं मिल रहा है। हम हाथ मलते ही रह जाते हैं।
गरीबी से वैसे तो सभी चीजें रूठी रहती हैं, अब पानी ने भी मुंह मोड़ लिया है। अपनी इतनी औकात तो है नहीं, जो रोज-रोज ‘पानी’ को अवकात बता सकें। इसलिए दिन भर पानी की राह ताकते रहते हैं। जब उनका मन करता है, नजर आ जाता है, नहीं तो समा जाता है, भू-तल में। इसमें हम जैसों का क्या कसूर। जो पानी से थोड़ी बहुत विनती कर बैठते हैं, मगर वह नहीं सुनता, बस सुनता तो पैसों वालों की और हर जगह सुलभ हो जाता है। गरीबों के हाथ, जिस तरह कुछ ठहरता नहीं, वैसा ही पानी भी दूर फटकता है। नजदीक जाओ, मुंह ऐंठ लेता है। मनाने लगो, त्योरियां चढ़ा लेता है।
इतना कुछ होने के बाद भी मन इसलिए मसोस लिया जाता है, गरीब ऐसे ही पीसने के बने होते हैं, जिनकी जिंदगी के हिस्से में ऐसे ही नजारे सुखद होते हैंे।
अब मैं मूल बात पर आता हूं। जब से सूरज ने तपिश बढ़ाई है, उसके बाद मेरा जीना मुहाल हो गया है। उनकी तपन बर्दास्त हो जाती है, लेकिन पानी की दूरियां नहीं। मैं सुबह से शाम तक बस एक ही चिंता में रहता हूं कि पानी मिलेगा कि नहीं...मिलेगा तो कैसे...नाराज होकर दूर तो नहीं चला जाएगा.. ऐसी ही बातों को सोच-सोचकर मन हैरान-परेशान रहता है। मन, केवल पानी के पीछे भागते रहता है। लेखक मन है, फिर भी लिखने का मन नहीं करता, कुछ सुझता ही नहीं, गर्मी में मन तिलमिलाया हुआ है। मन बस यही कहता है, जब तक पानी नहीं, तब तक कुछ नहीं। सुबह उठो और लग जाओ, पानी की तिमारदारी में। यह सिलसिला देर रात तक नहीं थमता, क्योंकि पानी की खुशामदी जहां छोड़े, उसके बाद पानी भी कहां परवाह करने वाला रहता है।
हालात ऐसे हो गए हैं, बिना नहाए पहले आह्वान करना पड़ता है, पानी भगवान की जय हो... पानी भगवान की जय हो...। ऐसे ही आलाप चलते रहते हैं, तब कहीं जाकर ‘पानीदेव’ खुश होते हैं और फिर तय होता है कि कितने बूंद टपकाए जाएं...। एक-एक बूंद के लिए मिन्नतें करनी पड़ती है। कैसे भी करके बाल्टी भर कर बेड़ा पार लगाओ और इस जिंदगी को सफल बनाओ। मैं पानीदेव को खुश करने के लिए फरमाइश करता हूं कि आ जाओगो तो लड्डू भोग में चढ़ाऊंगा, फिर भी नहीं मानते। कहते हैं, पहले मेरा मोल तो समझो, उसके बाद ही मानूंगा। एक-एक बूंद टपकाने के बाद कहता है, अब कुछ समझ में आ रहा है, ...जल ही जीवन है, इसे व्यर्थ न बहाएं...।
‘पानीदेव’ ने मुझे लताड़ लगाते हुए कहा कि बारिश के समय तो मुझे लात मारते हो और गर्मी आते ही पूजा करने लगते हो, ऐसा नहीं चलने वाला ? मेरा मोल हर समय समझो, तब जाकर मैं खुश होऊंगा। फिर मैं पानी रे पानी... कहते ही साक्षात् प्रकट हो जाऊंगा और कोई आवभगत करने की जरूरत नहीं पड़ेगी। अब जाकर मुझे समझ में आया कि आखिर ‘पानीदेव’ की महिमा क्या है ?

राजकुमार साहू
लेखक पत्रकार हैं।

जांजगीर, छत्तीसगढ़
मोबा . - 074897-57134, 098934-94714, 099079-87088

Views: 854

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on June 7, 2012 at 8:56am

साहू जी
        सादर, पानी की महत्ता को आपने सुन्दर व्यंग के बहाने लिखा है किन्तु कई क्षेत्रों में आज पानी की इतनी ही अधिक किल्लत है और दूसरी ओर लोग बेतहाशा पानी बर्बाद कर रहे हैं.

Comment by MAHIMA SHREE on June 3, 2012 at 10:22pm

राजकुमार जी .. बहुत बढ़िया .. इंसां भूखे रह सकता है पर पानी के बिना तो जीना मुश्किल है ..

पानी की महत्ता पर अच्छा व्यंग ..बधाई स्वीकार करें

Comment by Albela Khatri on June 3, 2012 at 8:46pm

वाह राजकुमार साहू जी,  बहुत ख़ूब........

‘पानीदेव’ ने मुझे लताड़ लगाते हुए कहा कि बारिश के समय तो मुझे लात मारते हो और गर्मी आते ही पूजा करने लगते हो, ऐसा नहीं चलने वाला ? मेरा मोल हर समय समझो, तब जाकर मैं खुश होऊंगा

बढ़िया  कारीगरी दिखाई पानी पर...जय हो !

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 3, 2012 at 7:00pm

आदरणीय साहू जी, सादर 

पानी के सन्दर्भ में सुन्दर लेख. बधाई. 
था बहुत इन्तजार उन्हें कि कब आएगी उनपे जवानी 
दो आरजू में कट गए दो इन्तजार में कहते पानी पानी 
पानी कभी था आँख में  पलकों का था कमंडल 
मर गया आँखों का पानी थर्रा गया सारा भू मंडल 
Comment by Rekha Joshi on June 3, 2012 at 6:04pm

राजकुमार जी ,बहुत बढ़िया व्यंग ,पानी रे पानी ,बधाई 

Comment by डॉ. सूर्या बाली "सूरज" on June 3, 2012 at 5:28pm

राज कुमार जी आज पानी वास्तव में सोना हो चुका है। पनि और आम आदमी की समस्याओं को उजागर करती ये रचना बहुत अच्छी है ! बधाई स्वीकार करें !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 3, 2012 at 4:19pm
पानी अर्थात जल अनमोल है, इसके संरक्षण हेतु सुन्दर 
व्यंग रचना के लिए बधाई राजकुमार साहूji|-लक्ष्मण प्रसाद लडीवाला
Comment by chandan rai on June 3, 2012 at 3:43pm
पानी रे पानी...


वाह मित्र ! कमाल का व्यंग्य लिखा

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

anwar suhail updated their profile
42 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

न पावन हुए जब मनों के लिए -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

१२२/१२२/१२२/१२****सदा बँट के जग में जमातों में हम रहे खून  लिखते  किताबों में हम।१। * हमें मौत …See More
yesterday
ajay sharma shared a profile on Facebook
Thursday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service