सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
नहीं मिलने मिलाने के उलाहने
प्रतियोगिता की अंधी दौड़
एक दुसरे को मिटा डालने का षड़यंत्र
सांसे जब तक टूटती हैं
उस क्षण को
ग्लानी से भरता है मन
और छोड़ देता है तन को
बची रह जाती है
उसकी कुछ यादें
अंततः कुछ भी नहीं बचता शेष
और फिर से शुरू हो जाती हैं
ये सारी प्रवंचनाएं
23july2008
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सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
उंच -नीच , जात -पात का भेद
सम्पन्नता -विपन्नता का आंकलन
.....................................................बहुत सुन्दर रचना
अध्यात्मिकता को स्पर्श करने का प्रयत्न करती कृति.
.....................साँसे जब तक चलती हैं ( साँसे जब तक असम्यक चलती हैं) सिर्फ तभी तक रहता है सुख-दुःख का एहसास...
उसके आगे द्वैत भाव समाप्त होने लगता है, और अद्वैत का अनुभव होना शुरू होता है. जहां सिक्के के दो पहलुओं में कोई भेद नहीं, बल्कि एक सुखकारी सामंजस्य होता है...
इस कृति के लिए हार्दिक बधाई.
behad khoobsoorati ke saath dil ko shabdon me ukera hai aapne is rachna ke liye saadhuwaad
सांसे जब तक चलती हैं
तब तक चलता है
सुख- दुःख का एहसास
मान -अपमान की पीडाएं
..सुन्दर रचना ..!!
बहुत दार्शनिकता ,सच्चाई से रूबरू कराती रचना ...वाह ..वाह बहुत सुन्दर
आदरणीय उमाशंकर जी .. आपका हार्दिक धन्यवाद , स्नेह बनाये रखे
महिमा श्री जी आपने तो कविता में
दर्शन भर दिया है| इस अध्यात्मिक रचना के लिए हार्दिक बधाई
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