//घुप्प अँधेरा, उफनता तूफ़ान, कर्कश हवाओं कि साँय-साँय, पागल चड चडाती दरख्तों की शाखाएं. किसी भी क्षण उसके सर पर आघात करने को उदद्यत, पर उसके कदम अनवरत गति से बढ़ते जा रहे हैं. काले स्याह मेघ कोप से उत्तेजित हो परस्पर टकरा टकरा कर दहाड़ रहे हैं, जिसकी आवाज ने उन दोनों की साँसों की आवाज को निगल लिया है. दामिनी थर्रा रही है गिडगिडा रही है, उसके चेहरे को देखने को व्यग्र शनै -शनै अपना प्रकाश फेंक रही है. पर उसका मुख घूंघट से ढका है, हाँ एक नन्ही सी जान एक कपडे में लिपटी हुई उसकी छाती से चिपटी हुई दिखाई दे रही है. उसे देख कर सारी कायनात विव्हल हो उठी, अम्बर ने भी अश्रुओं की झड़ी लगा दी कि किसी तरह उसका दिल द्रवित हो और उसके पाँव वापस लौट आंए. पर उसे क्या पता कि ये तूफ़ान तो कुछ भी नहीं उससे बड़ा तूफ़ान तो कब से उसके ह्रदय में तबाही मचा रहा है धन से तो वो पहले से ही वंचित थी अब तन और मन से भी हो गई. बस किस्मत से लड़ना ही उसकी नियति बन चुकी थी अम्बर के ये आंसू क्या हैं उसके सम्मुख, जो उसकी आँखों और आँचल से विस्तृत सागर बह रहा है लगातार कर्ण पटल पर आघात करता ये शोर उसको उसकी बेइज्जती और मजबूरी का उपहास करता प्रतीत हो रहा है. और वो चुपचाप उसी आसमान, जिसके नीचे उसकी बेबसी तार तार हुई थी को साक्षी मान कर रुक जाती है. उस झाड़ी की ओर जहां वो अपनी विदीर्ण छाती से मजबूरियों और बदनामियों की गठरी का बोझ उतार सके !!//
Comment
चन्दन राय जी हार्दिक आभार कविता की आत्मा को महसूस करने पर
आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर अभिवादन.
मेने पढ़ा बार बार पढ़ा . भाई चन्दन जी की बात ही मुझे ठीक लगी. बधाई.
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