ये सज़ा मिली मुझको तुमसे दिल लगाने की
मिल रही हें बस मुझको ठोकरें ज़माने की
फैसला हे ये मेरा मैं तुम्हें भुला दूंगा
तुमको भी इजाज़त हे मुझको भूल जाने की
ख़ाब अब मुहब्बत के मैं कभी न देखूँगा
ताब ही नहीं मुझमे फिर से ज़ख्म खाने की
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
वो चले गए लेकिन हम न कुछ भी कह पाए
दिल में रह गयी हसरत हाले दिल बताने की
Comment
vaah bahut umda ghazal hai.
achhi ghazl sahab...daad kubool kijiye
bahut bahut shukriyaah sooraj bhai bas yun samajh leejiye ki ye ghazal merei zindgi ka aaina he
हसरत भाई बड़ी उम्दा ग़ज़ल पेश की है । बहुत नायाब शेर निकाले हैं आपने। ये शेर तो दिल को छू गया:
रह गयी उदासी हीअब तो मेरे हिस्से में
अब वजह नहीं कोई मेरे मुस्कुराने की
अच्छी शायरी के लिए दाद कुबूल करें !!
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