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घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी

बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी



हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी दी
उसने उसकी वाट  लगादी बाबाजी



कुल्फी खानी थी तो पहले  कह देते
अब तो मैंने चाट लगादी बाबाजी



पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट  लगादी बाबाजी



हाय डार्लिंग ! की जगह बहनजी कहने पर
लड़की ने  चम्माट लगादी बाबाजी



पैसा लेकर प्रश्न  पूछने वालों ने
संसद में भी हाट लगादी बाबाजी



कौन बचाये जोशी को अब 'अलबेला'
जब मोदी ने काट लगादी बाबाजी



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Comment

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Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 9:25pm

क्षमा चाहता हूँ  आदरणीय योगराज जी,  यद्यपि  आपने समझाया बहुत  सलीके  से है, परन्तु  मैं पूरी तरह अभी  भी समझ नहीं सका हूँ.  कदाचित  धीरे धीरे ही समझ आएगा . बहरहाल  मुझे  ये जानना था कि  अब इन्हें ठीक  कैसे करूँ ?

प्रयास करूँगा कि आगे इसे न दोहराऊं........आपने समय दिया, सुझाव दिया ...आपका आभारी हूँ
__धन्यवाद


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2012 at 2:51pm

अलबेला भाई जी, आपके बाकी अशआर बिलकुल ठीक ठाक हैं. देखिए. इस ग़ज़ल में "टाट, वाट, खाट और वाट आदि काफिये हैं, और "लगा दी बाबाजी" रदीफ़ है जोकि एकदम दुरुस्त है. दरअसल मतले या हुस्न-ए-मतला (पहले मतले के बाद में आने वाले मतले) के बाद जहाँ भी किसी शेअर के दूसरे मिसरे (मिसरा-ए-सानी) के अंत में "बाबाजी" के मुकाबले ऐसा शब्द लिया जायेगा जिसका अंत बड़ी "ई" की मात्रा से होता हो (मिसाल के तौर पर चालाकी, जासूसी, पिता जी, माता जी, हैरानी, परेशानी, नादानी, सालिम काली, पाली, निराली, ख्याली आदि) तो वह ऐब-ए-ताक़बुल-ए-रदीफ़ का दोष पैदा होगा.

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 2:14pm

बहुत बहुत धन्यवाद  आदरणीय डॉ प्राची सिंह जी.........
आपकी सराहना  मेरे लिए प्रमाण-पत्र  से कम नहीं
____बाबाजी भी आपको शुक्रिया कह रहे हैं
____सादर


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 15, 2012 at 2:07pm
बाबा जी के इतने सारे रूप देख कर मैं दंग हूँ.
तारीफ़ के लिए शब्द नहीं हैं... अशआर एक से बढ कर एक हैं.
हार्दिक बधाई आ. अलबेला जी..
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 1:58pm

याद रखना भैया कुमार गौरव अजीतेंदु ............ख़ासकर यू पी  में तो बिलकुल बहनजी  मत कहना,  बहनजी कैसी होती हैं....ये वहाँ के लोग  जानते हैं ....हा हा हा हा

___आपकी टिप्पणी से आनन्द मिला ...आभार

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 15, 2012 at 1:51pm
बड़े भैया, आजकल बहन जी कहना यानि चम्माट खाना! बाप रे, अच्छा किया आपने पहले ही आगाह कर दिया। ही...ही...ही...
Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 1:46pm

आदरणीय  योगराज जी,
ख़ुशामदीद.
आप एक ख़ुशनुमा  बयार की तरह आये  और  सराहना के साथ साथ  मेरा तीय-पांचा करके  फट से चले भी गये .बड़ा  अच्छा  लगा आपका इस प्रकार विस्तार से  टिप्पणी करना .....धन्यवाद हुज़ूर...थैंक यू वैरी मच !

पर एक बात समझना चाहता हूँ ....आपने फरमाया कि

___दोनों मिसरों का अंत "दी" और "जी" से हुआ है जोकि समान स्वर पैदा कर रहे हैं. इल्म-ए-अरूज़ में इसे "ऐब-ए-ताकाबुल-ए-रदीफ़" के नाम से जाना जाता है.

___________प्रभुजी,  मेरे तो सारे  मिसरों में यही हुआ है . तो क्या ये पूरी रचना ऐबग्रस्त है ?  मैं  अगर ये कहूँ कि  इस ग़ज़ल का रदीफ़  "लगादी बाबाजी" है, तब भी क्या ये  ऐब ही है ?  मानलो  अगर ये ऐब है तो फिर इसका इलाज क्या है ?  क्या लगादी  को लगाई  करने से ठीक होगा  ?

कृपया  मार्गदर्शन करें............

_________धन्यवाद


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 15, 2012 at 1:22pm

//बोतल पर क्यों  डाट लगादी बाबाजी
मखमल में क्यों टाट लगादी बाबाजी// बोतल पर डाट - बहुत बेइंसाफी है ये. मतला सुन्दर कहा है.



//हमने जिसको जो भी ज़िम्मेदारी दी
उसने उसकी वाट  लगादी बाबाजी// हुज़ूर, गलत लोगों  को जिम्मेवारी सौंपेंगे तो यही होगा न ? एक पुराना गीत याद आ गया, "तुम अपना रंज-ओ-गम अपनी परेशानी मुझे दे दो"  वैसे किसी से कहियेगा मत मालिक, दोनों मिसरों का अंत "दी" और "जी" से हुआ है जोकि समान स्वर पैदा कर रहे हैं. इल्म-ए-अरूज़ में इसे "ऐब-ए-ताकाबुल-ए-रदीफ़" के नाम से जाना जाता है. 



//कुल्फी खानी थी तो पहले  कह देते
अब तो मैंने चाट लगादी बाबाजी// वाह वाह वाह !!!


//पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की
घर के बाहर खाट लगादी बाबाजी// क्या कहने हैं - क्या कहने हैं. जवाब नहीं इस शेअर का. हासिल-ए-ग़ज़ल शेअर.  हालाकि ऊपर बताया गया ऐब यहाँ भी चिपका हुआ है.



//हाय डार्लिंग ! की जगह बहनजी कहने पर
लड़की ने  चम्माट लगादी बाबाजी// अब आगे को कान हो जाने चाहियें भाई जी. :)))



//पैसा लेकर प्रश्न  पूछने वालों ने
संसद में भी हाट लगादी बाबाजी// सही फ़रमाया, मगर नतीजा क्या निकला ??



//कौन बचाये जोशी को अब 'अलबेला'
जब मोदी ने काट लगादी बाबाजी // जवाब नहीं सर जी. सब एक दूसरे की बो-काटा करने पर तुले हुए हैं. बहरहाल इस खूबसोरत और मसालेदार कलाम के लिए दिल से बधाई.  

Comment by Albela Khatri on June 15, 2012 at 10:11am

आपका ख़ूब ख़ूब  धन्यवाद  सम्मान्य प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा जी.,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 15, 2012 at 10:02am

पत्नी ख़ुश है क्योंकि  बूढ़े पापा की 
घर के बाहर खाट  लगादी बाबाजी

आदरणीय अलबेला जी, सादर अभिवादन 

एक से बढ़ के एक , बधाई. 

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