जतिन जी ने बहुत ही लाड़-प्यार से अपने दो बेटों और एक बेटी को पाला. तीनो को बराबर उच्च शिक्षा दिलवाई, दोनों बेटे इंजिनियर और बेटी डॉक्टर बन गयी. उचित और उपयुक्त समय पर तीनो बच्चों का विवाह भी कर दिया. लड़की अपने पति के साथ विदेश चली गयी. लड़के भी बड़े बड़े शहरों में बड़ी कंपनियों में नौकरियां पाकर अपने-अपने परिवार को साथ लेकर वहीँ रहने लग गए. जतिन जी स्कूल की नौकरी पूरी करके सेवा निवृत्त हो गए और अपनी पत्नी के साथ अपने गाँव के घर में अकेले रह गए.
जब बच्चे छोटे थे तो उनके साथ बिताने को समय कम पड़ता था, लेकिन अब समय काटे से भी नहीं कट्टा था. बच्चों से फ़ोन पर ही बाते होती, और उनके कुशल क्षेम का समाचार मिलता रहता. फ़ोन के ज़रिए ही बच्चे कभी उन्हें सूचना तकनीक के क्षेत्र में हुई क्रांति के बारे में तो कभी शिक्षा के क्षेत्र में हुवे बदलाव के बारे में तो कभी चिकित्सा के क्षेत्र में हुई नयी खोजों के बारे में बताते रहते थे.
बच्चो के पास उनसे मिलने के लिए गांव आने का समय नहीं था, अतः जतिन जी ने बारी-बारी शहर जाकर उनसे मिल आने का विचार बनाया तथा पत्नी को साथ लेकर बड़े बेटे के यहाँ पहुँच गए. बेटा उन्हें देखकर बहुत खुश हुआ पर, अभी कुछ मिनट ही बीते होंगे कि बेटे के मोबाइल की घंटी बज गई, एक कॉल पूरी हुई तो दूसरी, फिर तीसरी. तथा बेटा बिना ढंग से नाश्ता किये दफ्तर चला गया. घर आते-आते रात के दस बज गए. इसी तरह पूरा सप्ताह गुजर गया. न बेटे के पास पिता के पास बैठने कर बतियाने का समय था, न बहू को समय मिल पा रहा था सास ससुर का कुछ विशेष ख्याल रख पाने का. आखिर जतिन जी ने वापस गांव जाने का निर्णय लिया. सूचना तकनीक के इस ज़माने में अपनी औलाद से फ़ोन पर ही बात कर पाना संभव है, उन्हें यह बात अब अच्छी तरह समझ आ गई थी.
Comment
आधुनिक जीवन शैली और रिश्तों के साथ किए गए समझौतों का सटीक चित्रण हुआ है!
nilam ji, achchi laghu kahani ke liye bdhai | yah baat to ab sabhi rishto par satik bethti hai |
नीलम जी ,आज की व्यस्त जीवन शैली का सही चित्रण,बच्चों के पास समय का अभाव ,बढ़िया लघु कथा ,बधाई
आदरणीया नीलमजी, आपने इस लघुकथा के माध्यम से आजके परिवारों की पंगुता को स्वर दिया है. परस्पर भावनाएँ भले कम न हुई हों परन्तु जीवन पद्धति के अचानक बदल जाने से रिश्तों के आयाम बदल गये हैं.
बहुत ही सधे स्वर में आपने अपनी बात कही है. आज के लगभग हर तथाकथित आधुनिक घर की कहानी स्वर पा गयी है. क्या हम भी इसी विवशता को नहीं जी रहे हैं ?
एक उत्कृषट रचना हेतु सादर बधाइयाँ.
शत प्रतिशत सच्चाई है इस कहानी में यही तो हो रहा है कहीं भी किसी भी क्षेत्र में चले जाओ यह फोन हर जगह आपको मिलेगा यहाँ तक डाक्टर आपका चेक अप कर रहा है और उसका मोबाइल बजने लगता है |बहुत अच्छी कहानी है
saty ko sateek shabd deti laghukath Neelam ji wah!
शायद यही २१ वी सदी का "तोहफा" है आद नीलम जी. वास्तविकता को बयान करती हुई इस सार्थक लघुकथा हेतु साधुवाद स्वीकारें.
आदरणीय महोदया जी, सादर
यही हो रहा है. बधाई.
वाह
डूब गए इसकी गहराई में
सच कहा आपने
__बधाई इस अनुपम पोस्ट के लिए
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