For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिल मेरा तोड़ के इस तरह से जाने वाले

दिल मेरा तोड़ के इस तरह से जाने वाले।
बेवफ़ा तुझको पुकारेंगे ज़माने वाले॥

प्यार में खाईं थी क़समें भी किए थे वादे,
क्या तुझे याद है कुछ मुझको भुलाने वाले॥

झांक के देख ले अपने भी गिरेबाँ में तू,
उँगलियाँ मेरी शराफ़त पे उठाने वाले॥

सर झुकाये हुए कूचे से निकल जाते हैं,
हैं पशेमान बहुत मुझको सताने वाले॥

बाद मरने के अब उस शख़्स की क़ीमत समझे,
जीते जी जिसको न पहचाने ज़माने वाले॥

दाग़ दामन के भी क्या अपने कभी देखे हैं,
मुझपे इल्ज़ाम सरे आम लगाने वाले॥

मैं दुवाओं से तेरी बच के आ गया लेकिन,
मर गए डूब के ख़ुद मुझको डुबाने वाले॥

फूल ही फूल मिलें तुझको तू जिधर जाये,
ख़ार हरदम मेरी राहों में बिछाने वाले॥

मयकदा, रिंद, पैमाना सब आज रूठे हैं,
रूठे रूठे से है ये जाम पिलाने वाले॥

बात ये हमने भी लोगों से सुनी है यारो,
मारने वालों से बेहतर है बचाने वाले॥

ये सिला देखो मोहब्बत में मिला है “सूरज”,
ठोकरें मुझको लगातें हैं ज़माने वाले॥

डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

Views: 699

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ajay Singh on June 22, 2012 at 4:29pm

क्या तुझे याद है कुछ मुझको भुलाने वाले       very nice..........

 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 22, 2012 at 3:57pm

इस तरह तोड़ के दिल मेरा ए जाने वाले।
जा तुझे माफ़ किया दिल को दुखाने वाले॥

खुश रहे तू सदा .. क्या दिल पाया जनाब ने 

बधाई. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2012 at 11:49am

मैं दुवाओं से तेरी बच के आ गया लेकिन,
मर गए डूब के ख़ुद मुझको डुबाने वाले॥कोई जबाब नहीं आपकी ग़ज़ल का ...जबरदस्त ये शेर तो ल़ा आआअ जबाब है 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 22, 2012 at 10:57am

अच्छा लिखा आपने सूर्या जी.....बधाई.....

Comment by Sonam Saini on June 22, 2012 at 10:43am

Bahut khub sir ji. kamal likha h

Comment by yogesh shivhare on June 22, 2012 at 10:42am

झांक के देख ले अपने भी गिरेबाँ में तू,
उँगलियाँ मेरी शराफ़त पे उठाने वाले॥

खूबसूरत अल्फाजो से सजी हुई ग़ज़ल सूरज जी .बेहद उम्दा 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service