For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कहाँ गई वो मेरे देश की खुशबु

जिसमे सराबोर  रहते थे

इंसानों के देश प्रेम के जज्बे ,

कहाँ गई वो माटी की सुगंध

जिससे जुडी रहती थी जिंदगी  

कहाँ गए वो आँगन 

जिनमे हर रोज जलते थे 

सांझे चूल्हे 

जहां बीच में रंगोली सजाई जाती थी 

जो परिचायक थी 

उस घर की एकता और सम्रद्धि की 

जिसमे खिल खिलाता था बचपन 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई उसको 

आधुनिकता नामक विष 

घुल गया वहां के परिवेश में 

विघटित हो गए आँगन 

विघटित हो गए 

बंधन 

हर जगह बीच में

दीवार नजर आती है 

बस अहम् जी रहा है 

कहाँ जा रही हैं 

इस युग की सीढियां 

पता नहीं ऊपर या नीचे !!!

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 10:34pm

बहुत बहुत शुक्रिया गौरव जी 

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on June 20, 2012 at 10:22pm

आदरणीया राजेश जी, मैंने खुद इस अंधी आधुनिक दौड़ का हमेशा विरोध किया है.......बहुत अच्छी रचना....बधाई.....


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 10:03pm

बहुत ख़ुशी हुई आपकी प्रतिक्रिया जानकर हार्दिक आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 10:01pm

हार्दिक आभार रेखा जोशी जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 20, 2012 at 8:57pm
बहुत सुन्दर ...आदरणीया राजेश कुमारी जी ...जितना ऊपर जा रही हैं ये सीढियां उतना ही ध्वस्त करती नींव को ...काश वो प्राथमिक रिश्ते बिलकुल न टूट जाएँ  कुछ तो मिठास बची रहे ...प्यारी रचना 
भ्रमर ५ 
Comment by Rekha Joshi on June 20, 2012 at 7:39pm

Rajesh ji 

लगता है वक़्त की ही 

नजर लग गई उसको 

आधुनिकता नामक विष 

घुल गया वहां के परिवेश में 

विघटित हो गए आँगन 

विघटित हो गए 

बंधन ,bahut khub ,badhai 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 20, 2012 at 6:42pm

हार्दिक आभार प्रदीप कुमार जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on June 20, 2012 at 5:49pm

आदरणीय राजेश कुमारी जी, सादर 

आधुनिकता की दौड़ में आये परिवर्तन  के प्रति चिंता स्वाभाविक है. 

बधाई. 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं।हार्दिक बधाई। भाई रामबली जी का कथन उचित है।…"
Tuesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"आदरणीय रामबली जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । बात  आपकी सही है रिद्म में…"
Tuesday
रामबली गुप्ता commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . विविध
"बड़े ही सुंदर दोहे हुए हैं भाई जी लेकिन चावल और भात दोनों एक ही बात है। सम्भव हो तो भात की जगह दाल…"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई लक्ष्मण धामी जी"
Monday
रामबली गुप्ता commented on रामबली गुप्ता's blog post कुंडलिया छंद
"हार्दिक आभार भाई चेतन प्रकाश जी"
Monday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय, सुशील सरना जी,नमस्कार, पहली बार आपकी पोस्ट किसी ओ. बी. ओ. के किसी आयोजन में दृष्टिगोचर हुई।…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . रिश्ते
"आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी सृजन आपकी मनोहारी प्रतिक्रिया से समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . संबंध
"आदरणीय रामबली जी सृजन के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार ।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। अच्छे दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर छंद हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-168
"रोला छंद . . . . हृदय न माने बात, कभी वो काम न करना ।सदा सत्य के साथ , राह  पर …"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service