मुक्तक काव्य "कमला "
मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला
छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला
निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा
साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला
तन मलयागिर का चन्दन सा, मुखड़ा कुंदन है कमला
आँखें गहरी सागर जैसी, सुख अभिनन्दन है कमला
केशों में केशव बसते हैं, अधरों में है सुर देवी
जो देखे वो नतमस्तक हो , करता वंदन है कमला
हिरनी के जैसे चंचल है, बिजली सी चमके कमला
चंदा जिससे सकुचाता है, सूरज सी दमके कमला
मोती की दुति कम लगती है, हीरा फीका लगता है
सपने में जब जब आती है , प्रिय मेरी बनके कमला
मोहन की मुरली मीठी सी, कोयल का कलरव है कमला
शारद की वीणा से गुंजित, मृदु स्वर है नवरव है कमला
वाणी से नित रस बहता है, मोहित जो तन मन करता है
स्वर साधक की सुर सरिता का, आवश्यक अवयव है कमला
संदीप पटेल "दीप"
Comment
आप सभी आदरणीय स्नेही जनों का ह्रदय से धन्यवाद और आभार
समयाभाव की चलते मैं सभी को प्रथक प्रथक प्रतिक्रया नहीं दे पा रहा हूँ
संदीप जी बेहेतरिन रचना है
मन वीणा को झंकृत करती, मीठा स्पंदन हो कमला
छंदों में रस वर्षा करती, रस अभिवंदन हो कमला
निर्झर की पावन झर झर तुम, हंसती हो सरगम जैसा
साधक है खुद स्वर तेरे तो, तुम स्वर गुंजन हो कमला
कोई कुछ भी समझे मुझे यह किसी पूजा अर्चना से कम नहीं लगी
बधाई संदीप भाई
संदीप जी ,
क्या बात है संदीप पटेल 'दीप' जी.........
सबसे पहले तो आपको प्रतियोगिता में विजयी होने की बधाई !
आपके मुक्तक बांच कर आनंद आ गया
___अनेकानेक बधाइयाँ
अद्वितीय सौंदर्य वर्णन.संदीप जी आपकी रचना ने मंत्र मुग्ध कर दिया.
आदरणीय संदीप जी, सादर
डूब गया सागर में निकलूँ तो गीत गाऊं कमला
कितना सुह्दर सृजन तेरा क्या बतलाऊं कमला
बधाई,
waah, behatrin rachna. shayad kisi khas ke liye lagti hai...
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